हरिद्वार: गंगा रक्षा को 112 दिन की तपस्या (अनशन) के बाद उनके निधन पर धर्मनगरी का संत समाज भी दुखी है। संतों ने उनके निधन को गंगा रक्षा के लिए व्यर्थ नहीं जाने देने की बात कही है।
आचार्य महामंडलेश्वर श्री पंचदशनाम जूड़ा अखाड़ा स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि स्वामी सानंद ने गंगा रक्षा को अपने प्राणों की आहुति दी है। काली पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर कैलाशानंद ब्रह्मचारी ने स्वामी सानंद के निधन पर गहरा शोक जताया। उन्होंने कहा कि मां गंगा हमारी आस्था की प्रतीक है। मां गंगा की निर्मलता के लिए संत समाज सदैव समर्पित रहता है। जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी हंसदेवाचार्य ने कहा कि यह दुख की घड़ी है। सभी संत इससे व्यथित हैं।
महामंडलेश्वर हरिचेतनानंद ने कहा गंगा की रक्षा को लेकर समय-समय पर आंदोलन चला है। स्वामी सांनद ने अपने जीवन को गंगा रक्षा के लिए त्यागा है। गंगा रक्षा के लिए गंभीर कदम उठाने की जरूरत है। जयराम आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी महाराज ने भी स्वामी सांनद के निधन पर दुख जताया है। उन्होने बुधवार को भी मातृसदन पहुंचकर स्वामी सांनद से मुलाकात की थी। उन्होंने कहा कि गंगा रक्षा के लिए संतों के प्राणों के बलिदान पर अब तो गंभीरता दिखनी चाहिए। आने वाले दिनों में गंगा रक्षा के लिए संत बड़ा कदम उठाएंगे।
यह हैं प्रमुख मांगें
- गंगा महासभा, पंडित मदन मोहन मालवीय के पौत्र गिरधर मालवीय व सानंद समेत कई पर्यावरणविदों की ओर से अधिनियम के प्रस्तावित ड्राफ्ट-2012 पर जल्द संसद में कानून बनाने अथवा अध्यादेश लाने की मांग।
- उत्तराखंड की भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, ङ्क्षपडर व धौली गंगा नदी पर निर्माणाधीन व प्रस्तावित जल विद्युत परियोजनाओं पर रोक लगाई जाए।
- वन कटान, खनन और किसी भी प्रकार के खुदान पर पूर्ण रोक हो। विशेषकर हरिद्वार कुंभ क्षेत्र में।
- गंगा से जुड़े अहम फैसलों के लिए गंगा भक्त परिषद का गठन किया जाए। परिषद में गंगा में आस्था रखने वाले लोगों के साथ ही विशेषज्ञ शामिल हों। इस परिषद में केंद्र और राज्य सरकार या ब्यूरोक्रेट्स का हस्तक्षेप न हो।
- एक ऐसा कानून बने, जिससे जीने का अधिकार और समुदाय के भौतिक संसाधनों का सामूहिक हित में सर्वोत्तम उपयोग कराया जा सके।
- पर्यावरण के संरक्षण एवं संवद्र्धन पर राज्य की जवाबदेही तय हो।