जमशेदपुर । 22 मई 1984 को एवरेस्ट फतह करने वाली भारत की पहली महिला पर्वतारोही बछेंद्री पाल इन दिनों ‘मिशन गंगे’ पर हैं। 40 सदस्यीय नाविक दल के साथ गंगा यात्रा पर निकलीं 65 वर्षीय बछेंद्री गंगा किनारे बसे गांवों-शहरों के लोगों से गंगा को निर्मल बनाने की अपील कर रही हैं। पांच अक्टूबर को उत्तराखंड के हरिद्वार से शुरू हुआ उनका अभियान कई शहरों व राज्यों से होते हुए 31 अक्टूबर को पटना में खत्म होगा।यह पहली बार नहीं है कि टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन (टीएसएएफ) की प्रमुख बछेंद्री पाल पर्यावरण बचाने के लिए किसी अभियान का नेतृत्व कर रही हैं। बछेंद्री ने 1994 में भी गंगा यात्रा अभियान चलाकर गंगा की स्वच्छता का संदेश दिया था। तब उन्होंने हरिद्वार से कोलकाता तक 2100 किलोमीटर की दूरी तय की थी। इस दौरान नदी में कई शव तैरते मिले, जिसे अभियान दल ने जमीन में दफनाया था। इसके पूर्व वह एवरेस्ट को ‘वेस्ट फ्री जोन’ (कचरामुक्त) बनाने के लिए भी लंबा अभियान चला चुकी हैं। परिणामस्वरूप आज एवरेस्ट अभियान पर जानेवाले हर पर्वतारोही को वापसी के समय रास्ते में पड़े कचरे को इकट्ठा कर लाना अनिवार्य कर दिया गया है।बछेंद्री कहती हैं, एवरेस्ट फतह करने के बाद देश ने मुझे बहुत प्यार दिया, सम्मान दिया। जब आप इतना प्यार इतना सम्मान पाते हैं तो बड़ी जिम्मेदारी भी आपके कंधों पर आती है। इस जिम्मेदारी को निभाने का भरपूर प्रयास करती आई हूं। मिशन गंगे भी इसी दिशा में एक कदम है। गंगा न केवल जलस्रोत के रूप में बल्कि हमारी संस्कृति के आधार के रूप में हमारी बड़ी धरोहर है। गंगा सेवा यात्रा के दौरान हम लोगों को गंगा स्वच्छता का संदेश देंगे। गंगा की सफाई करेंगे।इस अभियान में शामिल 40 लोगों में आठ एवरेस्ट विजेता भी शामिल हैं। हमारे इस प्रयास से लोगों में, खासकर बच्चों और युवाओं में एक बेहतर संदेश अवश्य जाएगा। आठ-आठ सीट वाली पांच नौकाओं (राफ्टस) पर हम यात्रा कर रहे हैं। हम स्वत: भी गंगा की अधिक से अधिक सफाई कर सकें, यही हमारा प्रयास है। लोगों का भरपूर सहयोग मिल रहा है। वे इस काम की गंभीरता को समझ रहे हैं और संदेश को आत्मसात कर रहे हैं। केंद्र सरकार और नमामि गंगे प्रोजेक्ट का भी हमें पूरा सहयोग मिल रहा है। खुद प्रधानमंत्री जी ने हमें प्रोत्साहित किया है। अच्छा अनुभव है। देश में गंगा को स्वच्छ बनाने को लेकर एक उम्मीद जगी है और सभी यही चाहते हैं कि गंगा निर्मल बने।मेरे लिए गंगा यानी जीवन। मेरा घर भागीरथी (गंगा) के किनारे है। जन्म से लेकर मृत्य तक हमारे कोई भी संस्कार गंगाजल के बिना अधूरे हैं। हमारा जीवन गंगा से है और मरण के पश्चात मुक्ति भी गंगा से। गंगा जल मानो मेरे डीएनए में है। गोमाता, गंगामाता, धरतीमाता और भारतमाता… ये संस्कार मुझ जैसे करोड़ों भारतीयों के तन-मन में रचे-बसे हुए हैं। प्रकृति के संरक्षण की सीख देते हमारे ये संस्कार ही हमें प्रेरित करते हैं कि हम अपनी संस्कृति की, अपनी सांस्कृतिक धरोहरों की और प्रकृति की रक्षा करें। इसी प्रेरणा से गंगा सेवा यात्रा पर निकली हूं।