देहरादून: सारागढ़ी युद्ध की वीर गाथा भारतीय सैन्य अकादमी (आइएमए) में फिर एक बार जीवंत हो उठी। मौका था अकादमी में आयोजित लाइट एंड साउंड शो का। जिसके जरिए ‘जंग-ए-सारागढ़ी’ में 21 सिख योद्धाओं की शौर्य गाथा को याद किया। आइएमए कमांडेंट ले जनरल एसके झा ने प्रतिभागियों को सम्मानित किया। इस दौरान सेवारत व सेवानिवृत्त सैनिकों के साथ ही कई स्कूलों के बच्चे मौजूद रहे। 12 सितंबर 1897 को भारतीय सेना के वीरों ने ऐसी वीरता और शौर्य का प्रदर्शन किया था कि ये जंग इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए सुनहरे अक्षरों में लिख दी गई। ये जंग सारागढ़ी की जंग थी, जिसमें ब्रिटिश सेना की 36वीं रेजीमेंट, जो अब सिख रेजीमेंट के नाम से जानी जाती है, उसके 21 सिख सैनिकों ने तकरीबन 10,000 अफगानों के पांव उखाड़ दिए थे।इस जंग में भारत का सिर ऊंचा करने वाले सभी 21 सिख सैनिकों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट, ‘आइयूएम’, जो उस समय ब्रिटेन का सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार था, दिया गया। यह पुरस्कार आज के परमवीर चक्र के बराबर है। इन वीर योद्धाओं के सम्मान में अंग्रेजों ने दो सारागढ़ी गुरुद्वारे बनवाए। इनमें एक अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के प्रवेश द्वार पर और दूसरा फिरोजपुर कैंट में है।वर्ष 1897 में 12 सितंबर के दिन सारागढ़ी की लड़ाई लड़ी गई थी, जिसे बैटल ऑफ सारागढ़ी कहते हैं। इस दिन ब्रिटिश सेना की 36वीं रेजिमेंट (अब सिख रेजीमेंट के नाम से जानी जाती है) और अफगान कबिलाइयों के बीच युद्ध हुआ था। महज 21 सिख जवानों ने करीब 10 हजार अफगानी लड़ाकों से मुकाबला किया। सिख जवानों ने 600 अफगान कबिलाइयों को ढे किया था। सुबह से शाम तक चली इस लड़ाई में 21 जवान भी शहीद हो गए थे। मीडिया रिपोटर्स के मुताबिक 1897 में जब ये खबर आई थी तो ब्रिटिश संसद की कार्यवाही बीच में रोक कर जवानों को श्रद्धांजलि दी गई। ब्रिटिश सरकार ने 21 जवानों को मरणोपरांत इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट से नवाजा था। 12 सितंबर का सिख रेजीमेंट आज भी जश्न मनाती है, क्योंकि ये दिन सिख रेजीमेंट के लिए एक गौरवशाली दिन था।