गैस एजेंसिओं की कालाबाजारी से सरकार को हर महीने 70 लाख का नुकसान

देहरादून: राजधानी में कुछ गैस एजेंसियां धड़ल्ले से सरकार को चूना लगा रही हैं। शहरभर में घरेलू गैस सिलेंडरों से वैध तरीके से कॉमर्शियल सिलेंडरों में रीफिलिंग की जा रही हैं। यह सिलेंडर व्यवसायिक प्रतिष्ठानों को 100 से 150 रुपये प्रति सिलेंडर सस्ते दाम पर आसानी से उपलब्ध हो रहे हैं। सस्ते दाम पर मिलने की वजह से प्रतिष्ठानों में भी इन्हें ही खरीदना फायदे का सौदा समझा जा रहा है। मगर, इस कालाबाजारी से सीधे-सीधे राज्य व केंद्र सरकार के खाते में प्रति सिलेंडर आने वाले नौ-नौ फीसद टैक्स का चूना लग रहा है। देहरादून में इस ‘खेल’ से सरकार को हर महीने 70 लाख से अधिक के राजस्व का नुकसान होने का अनुमान है।

देहरादून में वर्तमान में कॉमर्शियल गैस सिलेंडर 1537.49 रुपये का बिक रहा है। इसका वास्तविक मूल्य 1302.96 रुपये है। शेष 234.54 रुपये में केंद्र व राज्य सरकार का नौ-नौ फीसद टैक्स जुड़ा होता है। लेकिन, देखने में आ रहा है कि व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में लगातार कॉमर्शियल सिलेंडर की मांग में कमी आ रही है। देहरादून जिले में आइओसी, बीपीसी, एचपीसी में हर महीने 30 से 40 हजार कॉमर्शियल गैस सिलेंडरों की बिक्री हो रही है, जबकि जानकार बताते हैं कि वास्तव में कॉमर्शियल सिलेंडरों की खपत के अनुरूप बिक्री 70 से 80 हजार तक होनी चाहिए।
यह कमी इसी गड़बड़झाले के कारण आ रही है। इन तीस हजार सिलेंडरों में 234 रुपये के टैक्स का आकलन करें तो यह राशि 70 लाख 20 हजार रुपये प्रति माह निकलती है। इस पर आइओसी के चीफ एरिया मैनेजर प्रभात कुमार वर्मा ने कहा कि एजेंसी संचालकों को इस संबंध में निर्देश जारी किए जाएंगे। वहीं, जिला पूर्ति अधिकारी विपिन कुमार ने कहा कि विभाग की ओर से चुनाव संपन्न होने के बाद इसको लेकर व्यापक अभियान चलाया जाएगा।

यह है खेल का गणित

दरअसल, 19 किलो के व्यवसायिक गैस सिलेंडर से गैस का प्रति किलो मूल्य निकालें तो 76.31 रुपये प्राप्त होता है। इसी तरह 14 किलो के घरेलू रसोई गैस सिलेंडर में गैस का प्रति किलो मूल्य 63.85 रुपये निकलता है। घरेलू गैस को कॉमर्शियल सिलेंडर में रीफिलिंग करके 19 किलो का वास्तविक दाम 1213.15 रुपये होता है, लेकिन इस सिलेंडर को 1350 रुपये तक बेचा जा रहा है। प्रतिष्ठानों को यह सिलेंडर कॉमर्शियल सिलेंडर के मुकाबले 100 से 150 रुपये सस्ता पड़ रहा है।

प्रतिष्ठानों की जांच से बचता है विभाग

देहरादून के करीब 30 फीसद से ज्यादा व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में अवैध तरीके से रसोई गैस का इस्तेमाल हो रहा है। कॉमर्शियल गैस के लिए कंप्यूटर जनरेटेड बिल दिया जाता है। नियमानुसार, जिला पूर्ति विभाग को प्रतिष्ठानों में इस बिल की जांच करनी होती है। लेकिन, दुर्भाग्य से पिछले लंबे समय से विभाग की ओर से इस तरह की कोई कार्रवाई देखने को नहीं मिली है।

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