देहरादून। आवास भत्ता समेत दस सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदेशभर में कर्मचारी संगठनों के आंदोलन के एलान से सरकार के हाथ-पांव फूले हुए हैं। कर्मचारी संगठनों की संयुक्त समन्वय समिति के 31 जनवरी को सामूहिक अवकाश और प्रस्तावित कार्य बहिष्कार को देखते हुए शासन स्तर पर आला अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई गई। बैठक में आंदोलन पर सख्त रुख अपनाते हुए समन्वय समिति के सदस्यों को नोटिस जारी किया गया। वहीं कर्मचारियों की समस्याओं के निराकरण को सभी विभागों में ग्रीवांसेस कमेटी गठित करने के निर्देश दिए गए। बैठक में तय किया गया कि आंदोलन की अवधि में कर्मचारियों को अवकाश नहीं दिया जाएगा। अवकाश पर रहने वाले कर्मचारियों पर नो वर्क नो पे सख्ती से लागू होगा। साथ ही इन कर्मचारियों को सचिवालय में प्रवेश भी नहीं करने दिया जाएगा।
उधर, आंदोलित कर्मचारियों के तेवर बरकरार हैं। समन्वय समिति को कर्मचारियों के संगठनों के समर्थन का सिलसिला भी जारी रहा। समन्वय समिति से जुड़े तमाम संगठनों ने अपनी जिला इकाइयों को भी प्रस्तावित आंदोलन में शिरकत करने को पत्र भेजे हैं।
सचिवालय में उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-समन्वय समिति के आंदोलन के नोटिस के संबंध में मुख्य सचिव ओम प्रकाश की अध्यक्षता में आपात बैठक हुई। बैठक में उन्होंने अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी की अध्यक्षता में गठित समिति को कर्मचारियों की समस्याओं का निरंतर अनुश्रवण एवं समाधान करने के निर्देश दिए। कहा गया कि समस्या का समाधान विभाग के स्तर से न होने पर उस प्रकरण को शासन स्तरीय समिति के पास भेजा जाएगा।
बैठक में प्रस्तावित आंदोलन के मद्देनजर सभी जिलाधिकारियों को उक्त अवधि में कानून एवं व्यवस्था बनाने को कहा गया है। जिलाधिकारी देहरादून एस मुरूगेशन को सचिवालय में एक एसडीएम तथा एवं पुलिस उपाध्यक्ष तैनात करने के निर्देश दिए। हड़तालियों पर सख्त नजर रखने के लिए शहर के विभिन्न स्थानों में सीसी कैमरे लगाने तथा वीडियोग्राफी करने के निर्देश भी दिए गए।
बैठक में अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि कर्मचारियों की हड़ताल या कार्य बहिष्कार कर्मचारी आचरण नियमावली के अंतर्गत प्रतिबंधित है। समन्वय समिति का नोटिस भी अदालत की अवमानना की श्रेणी में आता है। उन्होंने समस्त कर्मियों से अपील की कि वे जनहित में हड़ताल के फैसले को वापस लें।
वहीं, समन्वय समिति के संयोजक मंडल में शामिल दीपक जोशी ने कहा कि 30 जनवरी तक मांगे पूरी न होने की सूरत में 31 जनवरी को सामूहिक अवकाश लिया जाएगा। कर्मचारी अब पीछे हटने वाले नहीं हैं।
सामूहिक अवकाश पर अड़े कर्मचारी संगठन हुए एकजुट
सरकार की नीतियों के खिलाफ गुरुवार को सामूहिक अवकाश और चार फरवरी को महारैली निकालने जा रहे कर्मचारी अब आरपार की लड़ाई का मन बना चुके हैं। उन्होंने साफ किया कि वे प्रदेश सरकार के दबाव में नहीं आएंगे। उधर, विभिन्न विभागों के कर्मचारी संगठनों से भी आंदोलन को लगातार समर्थन मिल रहा है।
इसी कड़ी में ऊर्जा निगम के अधिकारी-कर्मचारियों के संयुक्त मोर्चे ने भी आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने का एलान कर दिया। उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति ने दावा किया कि यह आंदोलन ऐतिहासिक होगा।
विकास भवन में सहकारिता, पंचायती राज, पशुपालन, उद्यान समेत अन्य विभागों के कर्मचारियों ने आंदोलन के समर्थन में आवाज बुलंद की। इसके बाद उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति के बैनर तले कर्मचारियों की बैठक हुई। जिसमें वक्ताओं ने कहा कि प्रदेश सरकार लगातार कर्मचारियों के हितों पर प्रहार कर रही है।
महंगाई के समय में भत्तों में बढ़ोत्तरी करने के बजाय उन्हें समाप्त किया जा रहा है। पदोन्नति की व्यवस्था समाप्त करने से भी कर्मचारियों में रोष है। कहा कि प्रदेश सरकार को कर्मचारियों के साथ वार्ता करनी चाहिए थी, लेकिन सरकार सख्ती दिखाकर तानाशाही कर रही है। कर्मचारी सरकार के दबाव में नहीं आने वाले हैं।
बैठक में राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष नंद किशोर त्रिपाठी, महासचिव शक्ति प्रसाद भट्ट, जिला संयोजक चौधरी ओमवीर सिंह, प्रवक्ता गुड्डी मटूडा, इंसारूल-हक समेत कई अन्य उपस्थित रहे।
समिति का किया विस्तार
उत्तराखंड अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति के संयोजक मंडल ने भी पेयजल निगम के संघ भवन में महत्वपूर्ण बैठक की। इसमें संयोजकों ने समिति का विस्तार करते हुए अरुण पांडे, सुभाष देवलियाल, गुड्डी मटूडा को प्रदेश प्रवक्ता, शक्ति आर्य, बनवारी सिंह रावत को कोषाध्यक्ष व संदीप शर्मा को सोशल मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी दी गई।
कल परेड ग्राउंड में गरजेंगे कर्मचारी
संयोजक मंडल ने निर्णय लिया कि 31 जनवरी को सामूहिक अवकाश के दौरान राज्य कर्मचारी परेड ग्राउंड में एकत्र होंगे और आवाज बुलंद करेंगे। जबकि, जिलों में कर्मचारी जिला मुख्यालय, तहसील व अन्य निर्धारित स्थल पर आंदोलन करेंगे।
बिजली आपूर्ति भी हो सकती है प्रभावित
उत्तराखंड विद्युत अधिकारी-कर्मचारी संयुक्त संघर्ष मोर्चा के बैनर तले ऊर्जा के तीनों निगमों के अधिकारी-कर्मचारियों ने हस्ताक्षर अभियान चलाया। संगठन का दावा है कि बिजली घरों, सब स्टेशनों में कार्यरत कर्मचारी भी आंदोलन में शामिल रहेंगे। इससे बिजली आपूर्ति व्यवस्था के भी प्रभावित होने का अंदेशा जताया जा रहा है।
इसमें ऊर्जा से जुड़े सात बड़े संगठन शामिल हैं। इस दौरान मोर्चा संयोजक इंसारूल-हक, राकेश शर्मा, चित्र सिंह, डीसी ध्यानी, संदीप शर्मा, विनोद कवि, दीपक बेनीवाल समेत कई अन्य मौजूद रहे।
राजकीय पेंशनर्स का भी मिला साथ
सेवानिवृत्त राजकीय पेंशनर्स संगठन ने भी आंदोलन में शामिल होने का एलान किया है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष पीडी गुप्ता ने पेंशनर्स को राजकीय अस्पतालों में रेफर करने की व्यवस्था को समाप्त करने की मांग का समर्थन करते हुए आंदोलन को समर्थन दिया।
20 हजार उपनलकर्मी भी समर्थन में उतरे
उपनल कर्मचारी महासंघ ने भी नियमितीकरण व न्यूनतम वेतन की मांग पर आंदोलन को समर्थन दिया है। महासंघ के प्रदेश महासचिव हेमंत सिंह रावत ने कहा कि प्रदेश में 21 हजार से ज्यादा उपनलकर्मी कार्यरत हैं। इनमें 20 हजार कर्मी संगठन से जुड़े हैं। ये सभी कर्मी आंदोलन में शामिल रहेंगे।
इन विभागों में बाधित रहेगा कामकाज
यूपीसीएल, यूजेवीएनएल, पिटकुल, शिक्षा विभाग, सहकारिता, पंचायती राज, समाज कल्याण, तहसील, जिला पूर्ति विभाग, आरटीओ, पीडब्ल्यूडी, कलक्ट्रेट कर्मचारी।
ये हैं दस सूत्री मांगें
– आवास भत्ते में 8,12,16 प्रतिशत वृद्धि।
– वर्तमान एसीपी के स्थान पर एसीपी की पूर्व व्यवस्था लागू हो।
– शिथिलीकरण को 2010 के यथावत रखें।
– पुरानी पेंशन की बहाली की जाए।
– सरकारी अस्पतालों में रेफर करने की व्यवस्था समाप्त हो।
– चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को 4200 ग्र्रेड-पे।
– वाहन चालकों को 4800 ग्र्रेड-पे दिया जाए।
– उपनल कर्मियों को समान कार्य-समान वेतन।
– 2005 से पहले के निगम कर्मचारियों को स्वायत्तशासी निकायों के समान पेंशन।
सचिवालय के भीतर ही आंदोलन को लेकर असमंजस
उत्तराखंड-अधिकारी-कर्मचारी-शिक्षक समन्वय समिति के बैनर तले होने वाले आंदोलन को लेकर सचिवालय में ही घटक संघों के बीच ही असमंजस की स्थिति है। उत्तराखंड सचिवालय सेवा अधिकारी संघ (राजपत्रित) ने सचिवालय संघ को पत्र लिखकर इसमें शिरकत करने में असहज महसूस होने की बात कही है। वहीं, अब सचिवालय संघ ने बुधवार को सभी घटक संघों की बैठक बुलाई है। जिससे की आगे की रणनीति तय की जाएगी।
उत्तराखंड सचिवालय संघ की पहल पर आवास भत्ते समेत दस सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदेश भर के कर्मचारी आंदोलन की राह पर हैं। वहीं, सचिवालय के भीतर ही घटक संघों में आंदोलन को लेकर असमंजस है। इस कड़ी में बीते रोज सचिवालय सेवा अधिकारी संघ के अध्यक्ष बीएस कंडारी और महामंत्री केसी तिवारी ने एक पत्र सचिवालय संघ के अध्यक्ष और महामंत्री को प्रेषित किया है।
इसमें कहा गया है कि प्रदेश के विभागीय संगठनों संग सामूहिक अवकाश व सचिवालय घेराव का निर्णय सचिवालय संघ ने आम सभा में पारित नहीं किया। इससे सचिवालय सेवा अधिकारी संघ इस कार्यक्रम में प्रतिभाग करने में खुद को असहज महसूस कर रहा है। सचिवालय सेवा अधिकारी संघ ने सचिवालय संघ से आंदोलन के इस निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा है। साथ ही कहा है कि सचिवालय संघ की आमसभा और सभी संवर्ग संघों की सहमति के बाद आगे का निर्णय लिया जाएगा।
वहीं, इस क्रम में सचिवालय संघ सभी घटक संघों की बैठक बुलाई है। संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी का कहना है कि सचिवालय संघ सचिवालय संघ के सदस्य होने के नाते सभी पर संघ का निर्णय एक समान रूप से लागू होगा। यदि कोई संघ के निर्णय के खिलाफ जाएगा तो फिर संघ के नियमानुसार कार्यवाही की जाएगी।
प्रोत्साहन भत्तों में कटौती से पुलिस में भी नाराजगी
सरकार ने 23 जनवरी को प्रदेशभर के कर्मचारियों के 15 भत्ते खत्म करने के आदेश दिए थे। इस आदेश की जद में पुलिस के करीब तीन हजार से ज्यादा कार्मिक आ रहे हैं। अनुशासित फोर्स होने के नाते पुलिसकर्मी खुलकर नाराजी तो नहीं दिखा पा रहे, लेकिन कर्मचारियों के आंदोलन पर जरूर टकटकी लगाए हुए हैं। बताया जा रहा है कि आंदोलन को अंदरखाने समर्थन भी दिया जा रहा है। इससे लेकर पुलिस के अफसर भी चिंतित नजर आ रहे हैं।
पुलिस विभाग के करीब 25 हजार कार्मिकों में से पांच हजार से ज्यादा इंटेलीजेंस, विजिलेंस, सीआइडी, एसडीआरएफ, एटीएस, खनन से जुड़ी एसआइटी, राजभवन और मुख्यमंत्री आवास में ड्यूटी करते हैं। इनको डयूटी के बदले प्रोत्साहन और प्रतिनियुक्ति भत्ता 30 फीसद अतिरिक्त मिलता था। लेकिन सरकार ने इन भत्तों में भारी कटौती की है। इसका सीधा असर ड्यूटी करने वाले कार्मिकों की वेतन पर पड़ा है।
भत्ते खत्म करने और कटौती करने से सिपाही से लेकर इंस्पेक्टर तक को नुकसान उठाना पड़ेगा। ऐसे में पुलिस महकमे से जुड़े कार्मिक खुलकर तो नाराजगी नहीं दिखा रहे हैं, लेकिन अंदरखाने अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि कार्मिकों के भत्ते खत्म करने से पुलिस के अधिकारी भी खासे चिंतित दिख रहे हैं।
वह पुलिस कर्मियों की गतिविधियों पर अंदरखाने नजर रखे हुए हैं। हालांकि भत्तों का नुकसान उठाने वाले कार्मिकों की नजरें कर्मचारी संगठनों के आंदोलन की तरफ लगी हुई हैं। अगर कर्मचारियों के दवाब में सरकार अपना फैसला बदलती है तो इसका लाभ उन्हें भी होगा।
कर्मचारियों के आंदोलन को कांग्रेस का समर्थन
प्रदेश कांग्रेस ने उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति के 31 जनवरी को प्रस्तावित सामूहिक अवकाश आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा की।
पार्टी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने जारी बयान में कर्मचारियों की समस्याओं के लिए त्रिवेंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। कहा कि कर्मचारियों की 10 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रस्तावित आंदोलन को पार्टी उचित मानती है। कहा कि राज्य सरकार कर्मचारियों की समस्याओं के समाधान का प्रयास करने की बजाय कर्मचारियों को धमकाने का काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि सरकार ने अगर कर्मचारियों का किसी भी प्रकार का उत्पीड़न किया तो कांग्रेस कार्यकर्ता कर्मचारियों के साथ सड़क पर उतरेंगे। उत्तराखंड अधिकारी कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति के प्रतिनिधिमंडल ने कांग्रेस मुख्यालय पहुंचकर धस्माना को समिति की ओर से अपना मांग पत्र सौंपा। धस्माना ने प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह की ओर से कांग्रेस का आंदोलन को समर्थन देने संबंधी जानकारी दी।