जम्मू। मेजर रोहित शुक्ला कश्मीर के पुलवामा में तैनात इस भारतीय शेर का नाम सामने आते ही एक खौफ की छाया दहशतगर्दों के चेहरे पर छाने लगती है। मेजर शुक्ला की क्विक एक्शन टीम आतंक के गढ़ में चुन-चुन कर आतंक के पर्याय बन चुके चेहरों का शिकार करती रही और इस वीर सपूत के बहादुरी के किस्से पूरे देश की जुबां पर आ गए।52 ऑपरेशन में भाग ले चुके मेजर शुक्ला की रणनीति और हौसले के समक्ष दक्षिण कश्मीर में आतंकियों के किले ढहते चले गए और उनके आका सिर पीटते रह गए। अब जब सब षड्यंत्र विफल हो गए तो इस सपूत को घेरने के लिए अलगाववादी और कथित मानवाधिकार संगठन सियासत का मोहरा बनाने में जुटे हैं। घाटी के चंद सियासतदान भी उनके हाथों की कठपुतली बने नजर आते हैं, पर इस वीर सपूत के समर्थन में देशभर से उठी आवाज ने उनकी बोलती भी बंद कर दी है। भारत मां के इस वीर सपूत का जन्म देहरादून में हुआ। उनके पिता ज्ञानचंद्र शुक्ला और मां विजय लक्ष्मी शुक्ला दोनों ही अधिवक्ता हैं। शुक्ला का परिवार मूल रूप से कानपुर का है।बचपन से सेना में शामिल होने का जज्बा था और आखिरकार 2005 में एनडीए की परीक्षा के बाद देश सेवा का मौका मिल गया। 2017 में कश्मीर में पोस्टिंग मिली तो वह आतंकियों के लिए ही खौफ का पर्याय बनते गए। उन्हें लगातार दो वर्ष से वीरता के लिए पुरस्कृत किया जा रहा है। 2018 में उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। इस वर्ष भी उन्हें सेना मेडल मिला। उनकी बहादुरी के किस्से बयां करते हैं कि कश्मीर के आतंकी और अलगाववादी उनसे क्यों खौफ खाते हैं। अब उनका अंदाज मुख्यधारा की सियासत करने वाले सियासी दलों को भी परेशान कर रहा है। इसीलिए वह अब एक युवक की पिटाई के मुद्दे को हवा देने में जुटे हैं।मेजर रोहित शुक्ला के पिता एडवोकेट ज्ञानचंद्र शुक्ला बताते हैं कि बेटे का बचपन से ही सपना सेना में जाने का था। वो तो पैदा ही फौज के लिए हुआ है। एनडीए की परीक्षा में चयन के बाद रोहित ने कहा था कि उसे अपना सपना जीने का मौका मिला है। बहुत कम लोगों को वह मिल पाता है जो वे सच में चाहते हैं।मेजर शुक्ला के सहयोगी रहे राइफलमैन औरंगजेब को हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने जून 2018 में उस समय अगवा कर लिया था, जब वह ईद की छुट्टी पर घर जा रहे थे। उनसे मेजर शुक्ला के बारे में जानकारियां मांगी गईं, लेकिन औरंगजेब ने शहादत कुबूल की। औरंगजेब के अपहरण व हत्या के मामले में फोर्स के अंदर के कुछ लोगों के शामिल होने की आशंका जताई जा रही है। इस मामले में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया है। इन्हीं में से एक के भाई ने मेजर शुक्ला पर मारपीट और यातना देने के आरोप लगाए। आतंकियों और अलगाववादियों के सहारे सियासत चमकाने वाले दलों ने चुनावी मौसम में इसे मुद्दा बनाने का प्रयास किया है। लक्ष्य है कि सियासत के घेरे में फंसाकर मेजर शुक्ला को कश्मीर से बाहर भेजा जा सके। सुरक्षाबलों को कोसने की सियासत करने वालों के लिए वह वोट हथियाने का मुद्दा है।मेजर रोहित शुक्ला ने वर्ष 2018 में बुरहान वानी के बाद आतंकियों के पोस्टर ब्वॉय बने समीर टाइगर को मुठभेड़ में मार गिराया था। समीर टाइगर ने चूक यह कर दी थी कि उसने इस भारतीय शेर को सीधी चुनौती दे दी थी। हुआ यूं कि फिल्मी अंदाज में हिज्ब के दुर्दांत आतंकी समीर टाइगर ने 28 अप्रैल, 2018 की रात को सुरक्षाबलों के साथ काम करने वाले एक ग्रामीण की पिटाई का वीडियो जारी किया था। इसमें समीर टाइगर उस ग्रामीण की पिटाई करते हुए कह रहा था कि ‘जाओ शुक्ला को जाकर बताओ कि शेर ने शिकार करना क्या छोड़ा, कुत्ते समझते हैं कि सारा जंगल उनका है। अगर शुक्ला में दम है, तो सामने आकर लड़े।’ मेजर शुक्ला ने अपना नेटवर्क खंगाला और 24 घंटे भी नहीं बीते थे कि अपने घर से कुछ ही दूरी पर द्रबगाम में इस नकली टाइगर को गीदड़ की मौत मारकर साबित कर दिया कि उन्होंने असली शेर वह ही हैं।आतंकियों के घर पहुंच उन्हें शहीद बताने में जुटीं पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो इस जांबाज मेजर की बहादुरी पर सवाल उठाते हुए यहां तक कह दिया कि वह कश्मीर के मासूम लड़कों के साथ ज्यादती करता है। उसके खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्यपाल और कोर कमांडर से भी बात की। उमर अब्दुल्ला ने भी मेजर शुक्ला के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। सरकारी सेवा छोड़ सियासत में आए आइएएस टॉपर रह चुके शॉह फैसल ने भी उन्हें तुरंत स्थानांतरित करने व उनके खिलाफ जांच पर जोर दिया। कोएलेशन ऑफ सिविल सोसायटी नामक मानवाधिकारवादी संगठन के अलावा पूर्व निर्दलीय विधायक इंजीनियर रशीद और अलगाववादियों ने उन्हें युद्ध अपराधी तक बता डाला।कश्मीर में जिस तरह से मेजर शुक्ला के खिलाफ बयानबाजी का दौर चला, उसे कश्मीर विशेषज्ञ सुरक्षाबलों का मनोबल गिराने की साजिश के रूप में ही देखते हैं। उनके मुताबिक, इससे मेजर शुक्ला पर असर हो या न हो, लेकिन उनके परिवार पर असर हो सकता है और वह उन पर दबाव बना सकते हैं। इस समय आतंकियों को अपना मनोबल बढ़ाने के लिए कोई अवसर नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उनके आका अब सियासत को हथियार बनाना चाह रहे हैं। समीर टाइगर की मौत पर अपने बेटे की बहादुरी पर नाज जताने वाले एडवोकेट ज्ञानचंद्र शुक्ला और एडवोकेट लक्ष्मी शुक्ला कश्मीर से दूर देहरादून में आज लो प्रोफाइल रहना पसंद करते हैं।