देहरादून। समाज के बदलते परिवेश में विज्ञान हमारी पहचान बन चुका है। विज्ञान और वैज्ञानिक सोच के आधार पर ही हम देश के विकास और उसकी गति को तय करते हैं। ऐसे में वैज्ञानिक शोध बेहद मायने रखते हैं जो समाज की प्रगति के लिए सहायक हों। दून में भी ऐसे युवा हैं जो अपनी वैज्ञानिक सोच के आधार पर जनहित की दिशा में अपने शोध कर रहे हैं।डीएवी कॉलेज के जंतुविज्ञान के सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. पुष्पेंद्र कुमार शर्मा को हाल ही में उनके शोध के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है। भारतीय पर्यावरण अकादमी की ओर से फसलों को बर्बाद करने वाले कीटों पर किए गए उनके अध्ययन के लिए इमर्जिंग यंग साइंटिस्ट गोल्ड मैडल से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह सम्मान हिसार में आयोजित एक समारोह में फ्रांस के नोबेल प्राइज विजेता रह चुके प्रो. आर्थर रिडेकर के हाथों मिला।वह पिछले 16 वर्षों से फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों की पहचान व उनको नष्ट करने वाले परभक्षी कीटों की नई प्रजातियों को खोजने पर शोध कर रहे हैं। यह अध्ययन भारत, थाइलैंड एवं अमेरिका से प्रकाशित होने वाले रिसर्च जर्नल में प्र्रकाशित हो चुका है। उनका उद्देश्य भारतीय कृषि में कीटनाशकों की जगह जैविक नियंत्रण के प्रयोग को बढ़ावा देना है।22 वर्षीय हीरा सिंह गरिया एसजीआरआर कॉलेज ऑफ बेसिक साइंस एप्लाइड एंड साइंसेज में एमएससी बॉयोटेक्नोलॉजी के द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। वह अपने शिक्षक डॉ. नवीन गौरव के निर्देशन में अश्वगंधा से बनने वाली औषधियों पर शोध कर रहे हैं। मूल रूप से ग्वालदम, चमोली के रहने वाले हीरा बचपन से ही मेधावी रहे हैं। उनके रिसर्च पेपर इंटरनेट पर भी प्रकाशित होते रहते हैं। हीरा और डॉ. नवीन का कहना है कि हमारे पास औषधियों का अपार भंडार है। सही शोध की मदद से हम चिकित्सा और कृषि में बेहतर काम कर सकते हैं। इसके लिए वह पिछले तीन साल से अपनी रिसर्च कर रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी कोशिश है कि युवाओं द्वारा किए जा रहे इस तरह के शोधों को बढ़ावा मिले।