भारत में इजरायल के राजदूत डेनियल कारमोन ने दोनों देशों के रिश्तों के बीते ढाई दशक के सफर पर दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से खास बातचीत की। पेश है इसके मुख्य अंश:
भारत और इजरायल 2017 में अपने राजनयिक संबंधों की 25वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे है, रिश्तों का सफर किस मुकाम पर पहुंचा है?
हमारे रिश्तों ने सभी क्षेत्रों में 25 साल के मुकाबले कहीं ज्यादा लंबा व सकारात्मक सफर तय किया है। वास्तव में संबंधों की यह गति एक तरह का क्रांतिकारी बदलाव है। हमारी मित्रता खास और विशेष तरह की है क्योंकि हमारी चुनौतियों व मूल्य एक जैसे हैं। इसलिए हम कूटनीतिक रिश्तों की रजत जयंती मनाने को पूरी तरह उत्सुक हैं।
मगर कूटनीतिक गलियारे में अरब देशों के साथ भारत के विशेष संबंधों की वजह से इजरायल के रिश्तों को लेकर कशमकश चलती रही है?
दुनिया से अब वह दौर चला गया है जब इजरायल के कूटनीतिज्ञ किसी समारोह में जाते थे तो अरब देशों के लोग विरोध में बाहर चले जाते थे। दुनिया बदल चुकी है और इजरायल के अरब देशों के साथ भी रिश्ते हैं। भारत की एक स्पष्ट विदेश नीति में अरब देशों और फिलीस्तीन के मामलों को लेकर उसकी प्रतिबद्धता है। मगर इजरायल के साथ भी अच्छे रिश्ते हैं और वह इसे आगे बढ़ाना चाहता है। भारत की विदेश नीति साफ है कि उसे साझेदार चाहिए और इजरायल के रुप में उसे एक भरोसेमंद पार्टनर मिला है। खास बात है कि दोनों देशों के इस रिश्ते में किसी बाहरी तत्व की शर्त नहीं है।
अवाक्स फाल्कन रडार जैसे रक्षा उपकरण भारत को देने पर तैयार होने के बाद रक्षा साझेदारी की अगली बड़ी मंजिल क्या होगी?
भारत-इजरायल का संबंध केवल रक्षा खरीदार और विक्रेता भर का नहीं बल्कि कहीं आगे का है। इसमें टेक्नोलॉजी लेन-देन भर ही नहीं है। दोनों देश लगातार बाहरी आक्रमण के भुक्तभोगी हैं। इसलिए रक्षा और सुरक्षा क्षेत्र में हमारी साझेदारी एक दूसरे की जरूरत है। जहां तक भारत को नए रक्षा उपकरण देने की बात है तो इसका खुलासा करना अभी मुनासिब नहीं है, मगर इजरायल वह तमाम रक्षा उपकरण देने के लिए राजी है जिसकी जरूरत भारत समझेगा।
दोनों देशों के शिखर नेतृत्व की ओर से यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ है और प्रधानमंत्री मोदी 2017 में इजरायल जाने वाले हैं, इसको लेकर वहां कैसी उत्सुकता है?
बिल्कुल आपने सही कहा दोनों देशों के शिखर नेतृत्व के बीच रिश्तों में बदलाव साफ नजर आ रहा है। इसकी गहराई और गर्मजोशी निस्संदेह बढ़ी है। मैं यह नहीं कह रहा कि पिछले 25 साल में हमारे रिश्ते आगे नहीं बढ़े और मोदी सरकार में ही सब कुछ हुआ। मगर यह भी हकीकत है कि पिछले ढाई साल में भारत-इजरायल संबंधों की गतिशीलता खुले तौर पर झलकती दिखाई दे रही है। पहले रिश्ते बेहतर होते हुए भी भारत की ओर से खामोशी दिखाई जाती रही थी। मगर मौजूदा सरकार के दौरान संबंध सापेक्ष तौर पर दिख रहे हैं।
राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी पिछले साल इजरायल की यात्रा पर गए, हमारे राष्ट्रपति बीते महीने दिल्ली आए। इसी तरह दोनों देशों के गृह, विज्ञान व उपग्रह, विदेश और कृषि मंत्रियों ने एक दूसरे की यात्रा की है। दोनों देशों के नेतृत्व की राजनीतिक इच्छा शक्ति सहयोग को बढ़ाने को लेकर पहले की तुलना में इस समय कहीं ज्यादा है। पीएम मोदी इजरायल जाएंगे मगर अभी तक तारीख तय नहीं हो पायी है। पर हमारे रिश्तों की रजत जयंती साल में पीएम मोदी इजरायल की यात्रा करेंगे इसको लेकर हमारी बात चल रही है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू भी इसके बाद भारत का दौरा करेंगे।
ऐसी चर्चाएं हैं कि अमेरिका में डोनाल्ड टं्रप के राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप-मोदी और नेतान्याहू की वैश्रि्वक कूटनीति में एक नया एक्सिस बन सकती है, आप इसे संभव देख रहे?
यह बड़ा दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण सवाल है जिसका उत्तर देना आसान नहीं। पर दीगर बात यह है कि हम तीनों देशों के बीच नागरिकों के आपसी स्तर पर विशेष संबंध हैं। पेशेवर से लेकर लोकतांत्रिक मूल्य की बात हो या फिर सिलिकन वैली में साथ काम करने की। भारत में यहूदियों को हमेशा सम्मान मिला है। इसलिए रिश्तों को नए आयाम देने के लिए आकाश की उंचाई छूने का कैनवास है।
भारत और इजरायल के व्यापारिक रिश्तों पर भी क्या बेहतर होते संबंधों का असर है?
निसंदेह कारोबारी रिश्ते में भी अभूतपूर्व बढोतरी हुई। मगर कृषि क्षेत्र में हमारा सहयोग केवल कारोबार नहीं बल्कि साझेदारी है। पानी बिल्कुल नहीं होने और चारो तरफ से विकट चुनौतियों के बीच कृषि और सिंचाई क्षेत्र में इजरायल ने तकनीक विकास से फसल उत्पादन के क्षेत्र में नया आयाम स्थापित किए हैं। भारत के किसानों को इसका लाभ मिले इसके लिए हमने यहां सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोले हैं। ताकि इजरायल की बेहतरीन तकनीकों व उपकरणों के साथ अनुभवों का भारत के किसान फायदा उठा सकें। मोर क्रॉप पर ड्राप में हमारी महारत है और हम यहां भी ले आए हैं।
आतंकी मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने के संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रस्ताव को चीन की ओर से रोका जाना क्या आतंक पर भी निहित स्वार्थ को तवज्जो देना नहीं?
आतंकवाद दुनिया में शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। भारत और इजरायल के लिए तो खास तौर पर क्योंकि हम आतंकी निशाने पर रहे हैं। इसका मुकाबला करने के लिए सभी देशों को हाथ मिलाना होगा इसमें अच्छे और बुरे आतंकी में फर्क के मजाक को खत्म करना होगा। मैं मानता हूं कि अंतराष्ट्रीय समुदाय के कुछ प्रतिष्ठित सदस्य अच्छे और बुरे आतंकी की बात कहते हैं मगर यह बेहूदी बात है। आतंक की परिभाषा पर भी विश्र्व राजनीति के आइने में ये देश पहले अपने स्वार्थ को देखते हैं और फिर इसी हिसाब से बात करते हैं। आतंकी की लड़ाई की परिभाषा का भी वैश्रि्वक समुदाय में राजनीतिकरण हो रहा है और यह भारत- इजरायल देशों के लिए बड़ी चुनौती है।