प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का एक दिवसीय लखनऊ दौरा कई मायनों में खास रहा। पीएम का लखनऊ आने का कार्यक्रम काफी पहले से तय था, लेकिन यह खास इस लिए बन गया क्योंकि पिछले दस दिनों में उत्तर प्रदेश ने काफी कुछ सहा था। नागरिकता संशोधन बिल जिसमें तीन मुस्लिम देशों के अल्पसंख्यक हिन्दुओं, सिख, इसाइयों को भारत की नागरिकता दिए जाने का प्रावधान किया गया था, के खिलाफ एक वर्ग विशेष के लोगों ने पूरे प्रदेश को हिंसा की आग में झोंक दिया था। करीब डेढ़ दर्जन लोग मौत के मुंह में चले गए थे। इस हिंसा का सबसे दुखद पहलू यह था कि उपद्रवियों ने सरकारी और निजी संपत्तियों को तो नुकसान पहुंचाया ही, इसके साथ−साथ पुलिस कर्मी भी उनके निशाने पर रहे। आजाद देश के इतिहास में शायद यह पहला मौका था जब पुलिस को खासकर निशाना बनाया गया था। उपद्रवियों के हमले का शिकार होने वाले पुलिस कर्मियों में कई को गंभीर चोटें भी आईं। उपद्रवियों ने हिंसा की तो इस पर नेताओं द्वारा भी खूब सियासी रोटियां सेकीं गईं। दंगा करने वालों को उकसाया गया। इन नेताओं द्वारा जरा भी इस बात का विचार नहीं किया गया कि नागरिकता संशोधन बिल देश हित के लिए कितना जरूरी है। कांग्रेस, सपा−बसपा ने उक्त बिल को भाजपा की कथित साम्प्रदायिक सोच से जोड़कर पलीता निकाल दिया। उपद्रवियों के खिलाफ योगी सरकार ने सख्ती दिखाई तो यह भी तुष्टिकरण की सियासत करने वालों को रास नहीं आया। आखिर मामला मुस्लिम वोट बैंक की सियासत से जो जुड़ा था।