गलवान में चीनी सैनिकों की मौत की बात ग्लोबल टाइम्स ने मानी

चीन में स्वतंत्र मीडिया नहीं है. जो भी अख़बार या टीवी हैं सब पर वहां की कम्युनिस्ट सरकार नियंत्रण है. जो कुछ भी छपता है उसे चीन की कम्युनिस्ट सरकार के एजेंडे या प्रॉपेगैंडा के तौर पर देखा जाता है.

भारत और चीन में जारी तनाव को लेकर इन अख़बारों में लगातार भारत के ख़िलाफ़ धमकियां और चीन की बेशुमार ताक़त के बारे में छपता है. कहा जाता है कि ये अखबार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र हैं. ग्लोबल टाइम्स उन्हीं अख़बारों में से एक है.

15 जून को गलवान घाटी में चीन और भारत के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें 20 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी.

चीन के सैनिक कितनी संख्या में हताहत हुए इसकी आधिकारिक जानकारी अब तक नहीं आ पाई है. ग्लोबल टाइम्स जैसे अख़बार भी चीनी सैनिकों की मौत से इनकार करते रहे. अब पहली बार इसी अख़बार के संपादक ने चीनी पक्ष के नुक़सान की बात मानी है.

इस अख़बार के संपादक हू शिजिन ने गुरुवार को अपने ट्वीट में कहा, ”जितना मैं जानता हूँ उसके हिसाब से गलवान घाटी में 15 जून को भारत के 20 सैनिकों की मौत की तुलना में चीनी सैनिक बहुत कम हताहत हुए थे. किसी भी चीनी सैनिक को भारतीय सैनिकों ने पकड़ा नहीं था जबकि पीएलए (चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी) के जवानों ने कई भारतीय सैनिकों को पकड़ा था.”

इस ट्वीट के साथ एक भारतीय न्यूज़ रिपोर्ट का स्क्रीनशॉट भी लगाया था, जिस पर फ़ेक न्यूज़ का मार्क लगा था.

कई दशकों में दोनों देशों के बीच सीमा पर हुई ये पहली ऐसी घटना थी. चीन ने तब अपने बयान में नहीं बताया था कि उनके किसी सैनिक की मौत हुई है या नहीं. दोनों देशों में सरहद पर अब भी तनाव है. गुरुवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि भारत चीन के सामने झुकेगा नहीं और हर तरह की चुनौती के लिए तैयार है.

ग्लोबल टाइम्स की वेबसाइट पर हु शिजिन की एक टिप्पणी भी छपी है. इस टिप्पणी में उन्होंने लिखा है, ”भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि 15 जून को गलवान घाटी में चीनी सैनिकों को बड़ा नुक़सान उठाना पड़ा था. इस तरह के बयान का मक़सद भारत के राष्ट्रवादी खेमे को ख़ुश करना है. मैं आज इससे पर्दा हटाता हूं. चीनी सेना के क़रीबियों की सूचना के अनुसार गलवान घाटी में 15 जून को चीनी सेना भारतीय सेना की तुलना में बहुत कम हताहत हुई थी जबकि भारत के 20 सैनिकों की मौत हुई थी और कई गंभीर रूप से ज़ख़्मी हुए थे.”

उन्होंने लिखा है, ”सरहद पर तैनात पीएलए के अधिकारी, सैनिक बहादुर और एकजुट हैं. इनमें से ज़्यादातर का जन्म 1990 या 2000 के दशक में हुआ है. अचानक सामने आने वाली चुनौतियों से ये डरने वाले नहीं हैं. भारत की सेना अपने वादे निभाने में नाकाम रही है. चीनी सेना के कुछ अधिकारी और सैनिक सीमा पर गए थे तभी भारतीय सैनिक जबर्दस्ती बातचीत करने पर उतारू हो गए. इसी दौरान भारतीय सैनिकों ने बिना बताए हमला कर दिया और फिर टकराव शुरू हो गया.”

सरकार के कृषि विधेयकों को लेकर गुरुवार को बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट से इस्तीफ़ा दे दिया.

इसके बाद हरियाणा के उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला पर भी दबाव बढ़ रहा है. हरियाणा में बीजेपी और दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी की सरकार है. दुष्यंत चौटाला की पार्टी को किसानों का समर्थन मिलता है.

ऐसे में चौटाला के लिए किसानों की मांगों की उपेक्षा करना आसान नहीं होगा. अगर दुष्यंत चौटाला कोई क़दम उठाते हैं तो हरियाणा की बीजेपी सरकार अस्थिर हो सकती है क्योंकि यह सरकार चौटाला के समर्थन से ही चल रही है.

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया, “दुष्यंत जी हरसिमरत कौर बादल की तरह आपको भी कम से कम उप-मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए. आपको किसानों से ज्यादा अपनी कुर्सी प्यारी है.”

कांग्रेस नेता और राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने भी ट्वीट के ज़रिए सवाल किया है, “जब पंजाब के सब दल किसान के पक्ष में हो सकते हैं तो हरियाणा बीजेपी-जेजेपी क्यों नहीं?”

बादल परिवार और चौटाला परिवार में पुरानी मित्रता है. लोकसभा में कृषि विधेयकों का विरोध करते हुए सुखबीर बादल ने दुष्यंत चौटाला के परदादा चौधरी देवीलाल को भी याद किया और उन्हें महान किसान नेता बताया.

कुछ दिन पहले कुरूक्षेत्र के पीपली में विरोध प्रदर्शन के दौरान किसानों पर लाठियां बरसाई गईं और जेजेपी ने इस कार्रवाई को लेकर बयान जारी किया है.

दुष्यंत के छोटे भाई और जेजेपी नेता दिग्विजय चौटाला ने कहा, “जेजेपी उन किसानों से माफ़ी मांगती है जिन पर लाठियां चलाई गई. जेजेपी हमेशा किसानों के साथ है, किसानों के हित पार्टी के लिए सर्वेपरि हैं. किसानों पर लाठीचार्ज की वीडियो देख हमने सबसे पहले इसकी आलोचना की क्योंकि ये ग़लत था.”

हालांकि अब तक दुष्यंत चौटाला ने कृषि विधेयकों का विरोध नहीं किया है. गुरुवार को लोकसभा में इन विधेयकों को पास कर दिया गया है.

हरियाणा और पंजाब के किसानों को डर है कि नया बिल किसानों को अपनी उपज खुले बाज़ार में बेचने की अनुमति देता है, वो क़रीब 20 लाख किसानों- ख़ासकर जाटों के लिए तो एक झटका है. इसके अलावा एक डर ये भी है कि एफ़सीआई राज्य की मंडियों से ख़रीद नहीं कर पाएगा, जिससे एजेंटों और आढ़तियों को क़रीब 2.5% के कमीशन का घाटा होगा.

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