क्यों और कब से हिदुस्तान में मना रहे हैं ‘अग्निशमन सेवा सप्ताह

भारत में हर साल कोने-कोने में “अग्निशमन सेवा सप्ताह” मनाया जाता है. इसे मनाते हुए करीब 76-77 साल बीत चुके हैं. हिंदुस्तान में दमकल सेवा से जुड़े हर अफसर और जवान को “अग्निशमन सेवा सप्ताह” (फायर सर्विस वीक) हर साल 14 अप्रैल को मनाने की जानकारी तो है. मगर आमजन को यह शायद ही पता होगा कि आखिर हिंदुस्तान में सालाना “फायर सर्विस वीक” मनाया क्यों और कब से जा रहा है? दरअसल, इसे मनाने के पीछे दमकलकर्मियों की कभी न भूल पाने वाली बहादुरी और त्याग की कहानी छिपी है. वो कहानी जिसे लिखने के लिए मंबई फायर सर्विस के 66 बहादुरों ने अपने प्राणों की आहूति एक जगह एक वक्त में देने में गुरेज नहीं की थी. दरअसल “फायर वीक” हिंदुस्तान में मनाया जाना शुरू हुआ था 14 अप्रैल सन् 1945 से. इससे ठीक एक साल पहले यानि 14 अप्रैल 1944 को मुंबई फायर सर्विस के 66 कर्मी खुद की जान, मुसीबत में फंसे बाकी लोगों की जान बचाने की कोशिश में गंवा चुके थे. वे सभी रणबांकुरे थे मुंबई फायर ब्रिगेड के जवान. हुआ यूं था कि 14 अप्रैल सन् 1944 को एक जहाज मुंबई के समुद्री तट पर पहुंचा था, जहाज में कपड़े, तेल के ड्रम और गोला-बारुद भरा हुआ था. अचानक उस जहाज में भीषण आग लग गई. जहाज में लदे करोड़ों रुपए के माल की परवाह नहीं थी. परवाह थी उसमें फंस गए सैकड़ों कर्मियों/लोगों जिंदगी बचाने की. जब तक मुंबई फायर सेवा के बहादुर जहाज पर पहुंचे.

बहादुर आग और बमों के बीच कूद पड़े

आग और भी ज्यादा विकराल रूप धारण कर चुकी थी. जिस आग की विकराल लपटों को देखकर ही तमाशबीनों की चीखें निकल जा रही थीं. उसी दावानली आग को काबू करने का जिम्मा लिए मौके पर पहुंचे मुंबई दमकल कर्मी उसमें कूद पड़े. जहाज पर लगी उस भीषण आग पर काफी हद तक काबू भी पा लिया गया था. जब आग को शांत करने का ऑपरेशन चल रहा था उसी दौरान अचानक, जहाज के अंदर भीषण बम धमाके होने लगे. उन धमाकों की आवाजें इतनी तेज थीं कि मौके पर मौजूद सैकड़ों लोगों को कई दिन तक बाद में कानों से ठीक तरह सुनाई देना भी बंद हो गया था, जबकि जहाज पर आग काबू करने पहुंचे मुंबई दमकल सेवा कर्मी तो उन धमाकों की चपेट में ही आ गए थे.

रणबांकुरों की अकाल मौत का “जहाज”

जाने-अनजाने शायद यह बाद मुंबई फायर सर्विस के बहादुरों को नहीं मालूम थी कि FORT STIKINE नाम के उस जहाज के अंदर माल के रूप में भरे सामान में गोला-बारूद भी मौजूद है. लिहाजा जैसे ही आग ने उस गोला-बारूद को चपेट में लिया, एक के बाद एक कई जबरदस्त धमाके होने लगे. उन धमाकों में अकाल मौत का ग्रास मुंबई फायर ब्रिगेड के 66 जवान बन गए. उस हादसे में जवान और जहाज दोनो ही नष्ट होकर एक दूसरे में मिल गए थे. कहा जाता है कि उस हादसे में लगातार हुए बम धमाकों ने न केवल जहाज और मुंबई दमकल सेवा के बहादुरों की जान ली थी, वरन एक किलोमीटर के इलाके में भी तबाही मचाई थी. करीब एक किलोमीटर के दायरे में रहने वाले तमाम लोगों को कानों से कम सुनाई देने लगा था.

वो रुह कंपा देने वाली लोमहर्षक घटना

दिल्ली दमकल सेवा निदेशक अतुल गर्ग ने टीवी9 भारतवर्ष को बताया,”पूरी तरह तबाह हो चुके उस जहाज के अंदर से ब-मुश्किल बहादुर जवानों के शव तलाशे जा सके थे. उस घटना ने मुंबई फायर सेवा या फिर हिंदुस्तानी हुकूमत को ही नहीं, वरन् दुनिया भर की दमकल सेवाओं को हिला कर रख दिया था. उस घटना की याद में और उस घटना में शहीद बहादुरों को सम्मान देने के लिए अगले साल यानि 14 अप्रैल 1945 को पहला “फायर सर्विस वीक” मनाया गया था. दिल्ली दमकल सेवा डिप्टी चीफ फायर ऑफिसर डॉ. संजय कुमार तोमर के मुताबिक, “मुंबई में घटी उस लोमहर्षक घटना के बाद से ही, हर साल हिंदुस्तान भर में मनाए जाने वाले इस “फायर वीक” का मूलमंत्र, “अग्नि सुरक्षा उपकरणों का रखरखाव आग के खतरों को कम करने के लिये महत्वपूर्ण” (Maintenance of Fire Safety Equipment is key to Mitigate Fire Hazards) है.

चुनौतियों की गिनती याद नहीं रहती

दिल्ली के डिप्टी चीफ फायर अफसर डॉ. संजय कुमार तोमर आगे कहते हैं, “दमकल सेवा दुनिया में चाहे कहीं की भी हो. पूरी नौकरी आग से खेलते हुए भी उससे खुद बचना और उसमें फंसे हुए लोगों को सुरक्षित बचाना ही हमारी जिंदगी का पहला और आखिर चैलेंज होता है. यह चैलेंज एक दमकल सेवा कर्मी की जिंदगी में कितनी बार आता है, इसकी गिनती जमाने में शायद कोई दमकलकर्मी खुद भी याद नहीं रख पाता होगा. विकराल आग को काबू करने के लिए हम कूदते तो हैं, मगर लौटेंगे किस हाल में, सिवाय भगवान के कोई नहीं जानता है. हांलांकि अब, अग्निशमन सेवा पहले जैसे कमजोर नहीं रह गयी है. आज अत्याधुनिक तकनीक ने दमकलकर्मी को भी बेहद कामयाब और मजबूत बना दिया है.”

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