नई दिल्ली । किसी मशहूर शायर ने जम्मू-कश्मीर के बारे में कहा था कि अगर धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो यहीं है, यहीं है, लेकिन उस शायर का वो जन्नत जल रहा है। कुछ गुमराह युवक, कुछ गुमराह संगठन और पाकिस्तान की कुटिल चाल घाटी को रक्तरंजित कर रही है। नफरत की आग तहजीब की घाटी को जला रही है। बुरहान वानी के सफाए के बाद कश्मीर घाटी लंबे समय तक अशांत रही। पत्थरबाजी की घटनाओं ने घाटी की कानून-व्यवस्था को पैरों के बल खड़ा कर दिया। पत्थरबाजों पर लगाम लगाने के लिए पैलेट गन के इस्तेमाल का घाटी के कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया। लेकिन केंद्र सरकार ने साफ कर दिया कि पैलेट गन का इस्तेमाल पूरी तरह बंद नहीं किया जाएगा, हालांकि जवान पैलेट गन का इस्तेमाल कम से कम करेंगे। भारत सरकार, फौज और अर्द्धसैनिक बल अशांत घाटी को सामान्य बनाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन सवाल अभी भी मौजूं है कि आखिर वो कौन हैं जो नहीं चाहते हैं कि कश्मीर की रंग और रंगत कुछ वैसी हो जो उस मशहूर शायर ने कहा था। आज हम ये जानने की कोशिश करेंगे कि कश्मीर अशांत क्यों है।
पत्थरबाज कौन हैं ?
1990 में जम्मू-कश्मीर में दहशतगर्दी का दौर अपने चरम पर था। नफरत फैलाने वालों के हाथों में बंदूकें थीं। घाटी का जर्रा जर्रा गोलियों से छलनी हो रहा था। आतंकियों के बंदूकों से सिर्फ लाशें नहीं बिछ रही थी, बल्कि घाटी की फिजां में डर का वो माहौल बना जिससे लोग आज तक नहीं उबर सके हैं। करीब 27 साल बाद एक बार फिर कुछ वैसे ही हालात बन रहे हैं, फर्क सिर्फ इतना है कि आतंकियोें के हाथों में अब एके -47 की जगह पत्थरों ने ले लिया है। जानकारों का कहना है कि पत्थरबाजों का समूह उन युवाओं का है जो बेरोजगार हैं। पत्थरबाज पांच या सात हजार रुपये के लिए सुरक्षाबलों पर हमला करते हैं। उन गुमराह युवकों पर जब सेना कार्रवाई करती है तो उसके खिलाफ मुख्यधारा से कटे लोग पत्थरबाजों के समर्थन में आ जाते हैं। ऐसे तत्वों पर कार्रवाई करने के लिए पैलेट गन के इस्तेमाल पर घाटी में विरोध होता रहा है। इस संबंध में जम्मू-कश्मीर बार एसोसिएशन ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साफ शब्दों में कह दिया कि पहले आप लोग पत्थरबाजों से निपटने का उपाय बताएं। उसके बाद ही पैलेट गन पर किसी तरह का फैसला सुनाया जाएगा।
कहां से हो रही फंडिंग ?
वो कौन लोग हैं जो पत्थरबाजों को संसाधन मुहैया करा रहे हैं। इस सवाल पर जानकार एक सुर में कहते हैं कि सीमापार से पत्थरबाजों को आर्थिक संसाधन मुहैया कराए जाते हैं, जिसके लिए पाक सेना और आइएसआइ पूरी तरह से जिम्मेदार है। कुछ पत्थरबाजों ने एक स्टिंग ऑपरेशन में कबूला भी है कि उन्हें जैश, हिज्बुल और लश्कर- ए- तैय्यबा की तरफ से आर्थिक मदद मिल रही है। हाल के दिनों में आतंकी बैंक लूटने की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं। इस संबंध में जानकार पुख्ता तौर पर कुछ कहने से बच रहे हैं। लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि नोटबंदी के बाद घाटी में आतंकी संगठनों की कमर टूट चुकी है, लिहाजा वो अपने नापाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए बैंकों को निशाना बना रहे हैं।
कौन कर रहा सपोर्ट
कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाएं वर्ष 2010 से ही शुरू हो गई थी। कश्मीर घाटी में एक बड़ी आबादी मुख्यधारा में लौट रही थी। ऐसे हालात में पाक से संचालित आतंकी संगठनों में बेचैनी बढ़ गई। आतंक के आकाओं को लगने लगा कि अब वो कश्मीर में अप्रासंगिक हो रहे हैं, लिहाजा उन्होंने अपनी रणनीति बदली। भारतीय सैन्य बलों की चौकसी के बाद जब भाड़े के आतंकी सीमापार से घाटी में घुसने में नाकाम होने लगे तो आतंकी संगठनों ने अपनी रणनीति बदल दी। हिज्बुल और लश्कर के रणनीतिकारों ने स्थानीय कश्मीरी युवकों को भड़काना शुरू कर दिया।
अलगावदियों की भूमिका
जम्मू-कश्मीर के बिगड़ते हालात के लिए जम्मू-कश्मीर के अलगाववादी संगठन और उनके नेता पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। कश्मीर में केंद्र सरकार की तरफ से जब जब विश्वास बहाली के लिए बड़े कदम उठाए गए अलगाववादी नेताओं को लगने लगा कि अब वो अपना महत्व खो रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में बाढ़ के दौरान भारतीय सेना के मानवीय रूप की घाटी में जमकर सराहना हुई। ऐसे में अलगाववादी नेता बहके हुए युवकों को संगठित करने की कोशिश में जुटे रहे हैं। जनमतसंग्रह की आवाज अलाप कर वो लगातार नई दिल्ली और श्रीनगर के बीच दूरी बढा़ने की कोशिश करते हैं।
राज्य और केंद्र सरकार की भूमिका
राज्य की मौजूदा सरकार के बारे में कहा जाता है कि वो एक बेमेल गठबंधन है। भाजपा और पीडीपी के बीच के संबंधों पर हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता राम माधव ने टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि जिस मकसद के लिए गठबंधन किया गया शायद वो पूरी नहीं हो पा रही है। सीएम महबूबा मुफ्ती हमेशा कहती रही हैं कि विरोध प्रदर्शन करने वालों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को संयम का परिचय देना चाहिए। बुरहान वानी के सफाए के बाद गृृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत की बात कहकर केंद्र सरकार की मंशा साफ कर दी कि भारत देश के लिए कश्मीर सिर्फ जमीन का टुकड़ा नहीं है। लेकिन केंद्र सरकार की कश्मीर नीति पर विपक्षी दल सवाल खड़ा कर रहे हैं।
बेबस हैं सुरक्षा बल
अक्सर ये सवाल उठाया जा रहा है कि घाटी में हालात से निपटने के लिए सेना नाकाम क्यों हो रही है। लेकिन जानकारों का कहना कुछ और ही है। कश्मीर की जमीनी हकीकत से वास्ता रखने वालों का कहना है कि हाल के दिनों में आतंकियों और पत्थरबाजों ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। आतंक के सौदागर अब निर्दोष महिलाओं और बच्चों को ढाल बनाकर सेना को निशाना बना रहे हैं। हाल में कुपवाड़ा में मुठभेड़ के दौरान आम लोगों को मुठभेड़ वाली जगह पर आ जाना जीता जागता उदाहरण है। सेना प्रमुख बिपिन रावत ने साफ साफ कहा था कि अब कोई भी शख्स मुठभेड़ में बाधा पहुंचाएगा उसे आतंकी माना जाएगा।