देहरादून। नाबार्ड, उत्तराखंड के सुझावों के आधार पर महामहिम राज्यपाल, उत्तराखंड की ओर से कृषि व रेखीय विभागों की योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन व नवाचार के लिए नाबार्ड व राज्य सरकार के मध्य उचित समन्वय के लिए गठित मंत्रिस्तरीय समिति की प्रथम बैठक कृषि व कृषक कल्याण मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में बुधवार को राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के आईटी पार्क स्थित क्षेत्रीय कार्यालय में आयोजित की गयी। डॉ. आर. मीनाक्षी सुंदरम, सचिव, कृषि, पशुपालन व सहकारिता नाबार्ड क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य महाप्रबंधक (प्रभारी) डॉ. ज्ञानेन्द्र मणिय मुख्य महाप्रबंधक. पी. दासय महाप्रबंधक, भास्कर पंत, व राज्य सरकार के कृषि एवं संबद्ध विभागों के विभागाध्यक्ष, पंतनगर विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के साथ-साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। सुबोध उनियाल की ओर से अध्यक्षीय अभिभाषण में कहा कि कृषि क्षेत्र में कायाकल्प के लिए सबसे पहले जोन आधार पर नकदी फसलों का चयन, जंगली जावनरों से सुरक्षा, सिंचाई की सुविधा- सूक्ष्म सिंचाई, खाद्य प्रसंस्करण और रोपवे आदि पर ध्यान देना होगा। कृषि विकास के लिए राज्य सरकार के प्रयासों का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य सरकार ने फॉर्म मेकेनाइजेशन के तहत 1773 कस्टम हायरिंग सेंटर व फॉर्म मशीनरी बैंकों की स्थापना की है जो इनपुट लागत को कम करने में सहायक है। साथ ही 13 शहद पंचायतों का गठन किया जा रहा है जिससे लगभग 6500 किसान लाभांवित होंगे। राज्य में लगभग 6400 ऑर्गेनिक कल्सटर बनाये जा चुके हैं एवं वर्तमान वित्त वर्ष में 350 ऑर्गेनिक ऑउटलेट खोलने की योजना है। साथ ही आवश्यकतानुसार कोल्ड स्टोरेज की जगह कोल्ड रूम बनाने पर भी बल दिया। राज्य में लगभग 90 प्रतिशत किसान लघु एवं सीमांत किसान है और लगभग 90 प्रतिशत क्षेत्र असिंचित है जिस पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
उन्होंने राज्य में लैंड कंसोलिडेशन की समस्या को भी इंगित किया और इस क्षेत्र में राज्य सरकार के प्रयासों का भी उल्लेख किया। ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कृषि क्षेत्र एवं कृषि उत्पादन के डाटा संग्रहण को समय की मांग बताया एवं सीमावर्ती गाँव से होने वाले पलायन से देश की सुरक्षा के लिए उत्पन्न खतरे की बात भी सदन के समक्ष रखी और कहा कि नाबार्ड की ओर से कार्ययोजना में प्रस्तुत सुझाव पलायन को रोकने में उपयोगी साबित होंगे।
मुख्य महाप्रबंधक, नाबार्ड, डॉ. ज्ञानेन्द्र मणि ने अपने स्वागत अभिभाषण में फसल प्रणाली पर बात करते हुए सर्वप्रथम फसलों का चयन, उच्च उत्पादन क्षमता एवं बाजार की मांग को देखते हुए प्रत्येक क्षेत्र में (कृषि एवं संबंद्ध) किए जाने का सुझाव दिया। साथ ही रिसोर्स गैप एनालिसिस कर कार्ययोजना बनाते हुए कलस्टर को बाजार (राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय दोनों) से जोड़ने की बात कही। इस प्रयास में एपेडा की भागीदारी सुनिश्चित करना व केवीके के उपस्थिति को प्रासंगिक बनाने पर जोर दिया। ऑर्गेनिक उत्पाद उत्तराखण्ड की पहचान बने इसके लिए सभी विभागों को समन्वित कर एक प्लेटफॉर्म पर लाने का सुझाव दिया ताकि जरूरतमंद तक सरकार की सभी योजनाओं का लाभ पहुँचे।
पलायन को रोकना के लिए प्रत्येक कृषक परिवार में महिलाओं को पशुपालन, गैर कृषि गतिविधियों व पुरुष सदस्यों को कृषि के लाभकारी स्वरूप से जोड़ा जा सकता है। कृषि सम्मान पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी यथा कृषि, पशुपालन, मत्यपालन, बागवानी आदि को बेहतर कृषि नीति निर्धारण के समय उपयोग की जा सकती है। राज्य में निकट भविष्य में विभिन्न परियोजनाओं के अंतर्गत लगभग 400 कृषक उत्पादक संगठन बनाए जाने हैं। इस संदर्भ में आईएलएसपी -2 (प्रस्तावित) का लाभ भी समन्वयित किया जा सकता है।
सचिव, कृषि, सहकारिता व पशुपालन डॉ आर मीनक्षी सुंदरम की ओर से कहा गया कि पूर्व में खाद्य सुरक्षा के उद्देश्य से गेहूं व धान की फसलों पर बल दिया गया परंतु वर्तमान परिस्थितियों में पोषण सुरक्षा पर बल दिये जाने की आवश्यकता है जिसके लिए कृषि में विविधीकरण, पशुपालन, तिलहानी फसलों, बागवानी, मछलीपालन, मशीनीकरण इत्यादि पर बल दिया जाना चाहिए।
पीपीटी प्रस्तुति के माध्मय से सहायक प्रबंधक विकास कुमर जैन ने बताया कि राज्य में कृषि जोत का औसत आकार 0.89 हेक्टर है व अधिकतर कृषक छोटे व सीमांत हैंय राज्य में लगभग आधी आबादी कृषि पर आधारित है जबकि राज्य में कृषि योग्य भूमि कुल क्षेत्रफल की 15 प्रतिशत ही है। राज्य में कृषि के विकास की असीमित संभावनाएँ हैं जिसके उचित प्रयोग के लिए कृषि उपज को बढ़ाने, कृषक के लिए ज्यादा लाभकारी फसलों के क्षेत्रफल को बढ़ाने, बागबानी, पशुपालन, मछलीपालन, जैविक उत्पादन पर बल दिया जा सकता है। पीपीटी में किसानों की आय को बढ़ाने के लिए जिले वार एक फसल का चयन कर उसके लिए उचित बाजार, उत्पाद के भंडारण, प्रसंस्करण, निर्यात इत्यादि सुविधाओं का सृजने का सुझाव दिया।
मुख्य महाप्रबंधक, नाबार्डए.पी.दास धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि राज्य की परिस्थितियाँ मैदानी राज्यों से बिल्कुल भिन्न हैं एवं कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए अलग रणनीति से कार्य करना होगा। उन्होंने परिस्थिति आधारित एकीकृत कृषि मॉडल (बैंकेबल) विकसित करने पर जोर दिया। साथ ही साथ उन्होने समिति सदस्यों को बैठक के सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों का धन्यवाद दिया। बैठक में औद्यानिकी, कृषि, रेशम, पशुपालन, सहकारिता, मत्स्य, चाय विकास बोर्ड, जड़ीबूटी शोध, राज्य कृषि विपणन बोर्ड, उत्तराखंड तराई बीज निगम, उत्तराखंड औद्योनिकी परिषद, जैविक बोर्ड आदि विभागों के अधिकारी उपस्थित रहे। कृषि मंत्री ने उपस्थित अधिकारियों को कार्यबिन्दुओं पर शीघ्र कार्यवाही करने के निर्देश दिये।