नई दिल्ली । दुनिया के सुपर पावर देश अमेरिका को अब भारत उसी की ही भाषा में जवाब देने की तैयारी कर रहा है। यह तैयारी डीआरडीओ के जरिए की जा रही है। अगर आपको याद हो तो कुछ समय पहले अमेरिका का एक हाईटैक वैपन का जिक्र मीडिया में किया गया था। यह वैपन बिना किसी इंसान को नुकसान पहुंचाए अपना काम करता था। इसका टारगेट केवल कुछ मशीनी उपकरण होते हैं। लेकिन इस वैपन के पीछे जो सच छिपा है वह वास्तव में बेहद खतरनाक है। इस वैपन का नाम इलैक्ट्रोमैगनेटिक पल्स वैपन सिस्टम है। हालांकि अमेरिका के इस प्रोजेक्ट का नाम है ‘चैंप’ (CHAMP,” or Counter-electronics High-powered Microwave Advanced Missile Project)। अमेरिका अपने इस वैपन को अपनी वायु सेना समेत नौसेना में शामिल कर चुका है। यह वैपन भविष्य में युद्ध की तस्वीर को पूरी तरह से बदल कर रख देगा।
दरअसल, यह वैपन सेना और सरकार की मदद के लिए साबित होने वाली उन तमान चीजों को पंगु बना देता है जिनसे जानकारी लेकर वह आगे का फैसला करते हैं या अपनी रणनीति बनाते हैं। ईएमपी वैपन सिस्टम वास्तव में सेना और सरकार की मदद कर रहे कंप्यूटर के लिए घातक साबित होता है। यह हवा में रहते हुए ही उन तमाम सिस्टम को पूरी तरह से नाकाम बना देता है जो सेना और सरकार की रणनीति बनाने में सहायक साबित हो सकते हैं। इसको यदि दूसरे शब्दों में कहा जाए तो कंप्यूटर के नाकाम हो जाने के बाद सैटेलाइट से इनका कनेक्शन खत्म हो जाता है।
इससे खबरों और जानकारियों का आदान-प्रदान पूरी तरह से बाधित हो जाता है। इसका सबसे घातक परिणाम यह होगा कि सैटेलाइट से कनेक्शन टूट जाने की वजह से सीमा पर चौकसी कर रही सेना का संपर्क भी एक दूसरे से टूट जाएगा। ऐसे में न तो किसी फैसले की जानकारी सुरक्षाबलों तक पहुंचाई जा सकेगी और न ही उनका कोई आपात संदेश ही आ सकेगा। यह किसी भी देश के लिए सबसे घातक होगा। ऐसे वक्त में कोई भी देश अपनी सुरक्षा करने में पूरी तरह से विफल हो जाएगा और उस वक्त यदि उस पर हमला होता है तो वह कुछ नहीं कर पाएगा। अमेरिका की युद्ध रणनीति का यह सबसे घातक हथियार होगा। इस वैपन से कुछ खास इमारतों को टारगेट किया जाता है और फिर यह वैपन उसके ऊपर से गुजरता हुआ एक मैगनेटिक फील्ड बनाता है। इसके सहारे एक करंट छोड़ा जाता है जिससे इमारत में रखे सभी इलैक्ट्रोनिक सिस्टम जिसमें कंप्यूटर भी शामिल होता है, काम करना बंद कर देता है। अमेरिका की बोइंग कंपनी इस सिस्टम पर काम कर रही है।
ईएमपी वैपन सिस्टम कई देशों के लिए चिंता की बात हो सकती है। लेकिन हम आपको बता दें कि भारत इस चुनौती को पहले से ही भांपते हुए इस पर काम कर रहा है। डीआरडीओ करीब तीन वर्षों से इस वैपन सिस्टम और इसकी काट पर काम कर रहा है। डीआरडीओ इस क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है। लिहाजा भारत को इससे डरने की जरूरत नहीं है। भारत अमेरिका के इस घातक हथियार का जवाब अब उसी की ही भाषा में देने की तैयारी कर रहा है। भविष्य में उसको इसका जवाब मिल भी जाएगा। लेकिन यहां पर एक बात जो बेहद खास है वह ये है कि अमेरिका का जो वैपन दुनिया के सामने आ रहा है उसका अहसास पहले से भी डीआरडीओ को था, जिसपर काम भी तुरंत शुरू कर दिया गया था।