पश्चिमी यूपी में आतंक की जड़ें बहुत गहरी हैं। कभी शामली के कैराना तो कभी सहारनपुर से संदिग्ध गतिविधियां उजागर होती रही हैं। खास बात यह है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद की पश्चिमी यूपी में सक्रियता भी सबसे पहले सहारनपुर में ही सामने आई थी। ऐसे में देवबंद में बनने वाला एटीएस का कमांडो ट्रेनिंग सेंटर कई मायने में अहम होगा, जिसके जरिये एटीएस द्वारा आतंकी गतिविधियों पर करारी चोट की जा सकेगी।
दरअसल, जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी अजहर मसूद को छुड़ाने के लिए आतंकियों ने 1994 में हापुड़ से तीन विदेशी नागरिकों का अपहरण कर लिया था और सहारनपुर के खाताखेड़ी में लाकर एक मकान में बंद करके रखा था। जिस कार से विदेशी नागरिकों को सहारनपुर लाया गया था, उसका ड्राइवर गाजियाबाद जनपद में पकड़ा गया था। इसके बाद खाताखेड़ी में आतंकियों की घेराबंदी हुई और मुठभेड़ के दौरान इंस्पेक्टर ध्रुवलाल यादव सहित दो पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। एक आतंकी को भी मार गिराया था, लेकिन कई आतंकी फरार हो गए थे। तब विदेशी नागरिकों को मुक्त करा लिया गया था।
यह पहली वारदात थी, जिसमें पश्चिमी यूपी में जैश ए मोहम्मद की सक्रियता उजागर हुई थी। हालांकि इसके बाद मुजफ्फरनगर जिले के गांव जौला से भी जैश-ए-मोहम्मद का एरिया कमांडर मोहम्मद वारस गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा हाल ही में बिहार के दरभंगा रेलवे स्टेशन पर पार्सल ब्लास्ट मामले में शामली जिले के कैराना निवासी सलीम और उसके भाई को एनआईए एवं एटीएस ने गिरफ्तार किया था। इसके अलावा भी मुजफ्फरनगर, शामली और सहारनपुर से ऐसे संदिग्धों की गिरफ्तारी पूर्व के वर्षों में होती रही है। जाहिर है देवबंद में एटीएस का कमांडो ट्रेनिंग सेंटर बनने पर आसपास के जिलों में भी संदिग्ध गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जा सकेगी।