भूस्खलन की जद में उत्तराखण्ड के पहाड़

नई टिहरी। खतलिंग ग्लेशियर पर स्थित जिले का प्रसिद्ध पंवालीकांठा बुग्याल (मखमली घास का मैदान) तेजी से भूस्खलन की चपेट में आ रहा है। बीते वर्ष केंद्र सरकार की ओर से कराए गए सर्वे में इसका खुलासा हुआ था। अब वहां से लौटे ग्रामीणों ने भी वन विभाग को बताया है कि वहां भूस्खलन से बड़ी-बड़ी दरारें और गड्ढे बन गए हैं। इसे देखते हुए वन विभाग ने यहां भूस्खलन रोकने और जड़ी-बूटियों के संरक्षण को विस्तृत योजना बनाने की तैयारी की है।

टिहरी जिले में खतलिंग ग्लेशियर पर लगभग 11500 फीट की ऊंचाई पर स्थित पंवालीकांठा बुग्याल अपनी दुर्लभ जड़ी-बूटियों और शानदार ट्रैक के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यहां पहुंचने के लिए जिला मुख्यालय टिहरी से घुत्तू तक सौ किमी की दूरी सड़क मार्ग और फिर 18 किमी की दूरी पैदल तय करनी पड़ती है।

11399 हेक्टेयर में फैले इस खूबसूरत बुग्याल में पिछले कुछ समय से तेजी से भूस्खलन हो रहा है। पिछले साल केंद्र सरकार ने वन विभाग को यहां पर सर्वे के निर्देश दिए थे। इसमें लगातार भूस्खलन की बात सामने आई थी, लेकिन विभाग ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अब सर्दी शुरू होने के मद्देनजर यहां से लौट रहे वन गुर्जरों ने वन विभाग को यह सूचना दी है। उन्होंने बताया कि भूस्खलन के चलते बुग्याल में बड़े-बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिससे इसका अस्तित्व खतरे में है।

इसे देखते हुए विभागीय अधिकारी अब बुग्याल के दौरे की तैयारी कर रहे हैं। प्रभागीय वनाधिकारी (टिहरी) कोको रोसे भी स्वयं वहां दौरे पर जाएंगे। उन्होंने बताया कि यहां पर चैक डैम या फिर सुरक्षा दीवार बनाकर संरक्षण के लिए प्रयास किए जाएंगे। वहीं, यहां जो मानवीय गतिविधियां हो रही हैं, उन्हें ईको फ्रेंडली तरीके से संचालित किया जाएगा। ब्रह्मकमल, चिरायता, महामैदा, बज्रदंती, वत्सनाथ, मीठा, अतीस, कुटकी, आर्चा, डोलू, सालम मिश्री आदि। भूस्खलन के कारण यहां इन जड़ी-बूटियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है।

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