हाईकमान की मजबूरी, हरीश रावत हैं जरूरी

हरीश रावत के ट्वीट के बाद उपजे विवाद का पटाक्षेप करने के लिए बुलाई गई बैठक के बाद यह स्पष्ट हो गया कि वह हाईकमान के लिए कितने जरूरी हैं। जिस तरह से उन्हें फ्रीहैंड दिया गया है, उससे स्पष्ट है उत्तराखंड के साथ चार अन्य राज्यों में होने वाले चुनावों को देखते हुए पार्टी हाईकमान कोई रिस्क नहीं लेना चाहता है। पार्टी की प्राथमिकता इस वक्त खेमेबाजी पर लगाम लगाने की है, ताकि किसी भी तरह का नकारात्मक संदेश न जाए।

पूर्व सीएम हरीश रावत ने अपने ट्वीट में जिस तरह से संकेतों में अपनी उपेक्षा किए जाने और संगठनात्मक स्तर पर सहयोग न मिलने के सवाल उठाए थे, उनका किस स्तर तक समाधान हो पाया है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा। लेकिन, जो कुछ हुआ, इसे हरीश खेमा अपनी जीत के तौर पर देख रहा है। बताया जा रहा है कि तीन दिन पहले जब उन्होंने ट्वीट किया था, उसके कुछ समय बाद ही प्रियंका गांधी ने उनसे इस मसले पर लंबी बातचीत की थी।

हरीश ने उसी समय अपना दर्द उनसे बयां कर दिया था। इसके बाद शुक्रवार को राहुल गांधी के साथ हुई वन-टू-वन बातचीत के लिए भी हरीश रावत को सबसे पहले आमंत्रित किया गया। इस बातचीत में उन्होंने तमाम मसलों को विस्तृत रूप से सामने रखा। इसके बाद जिस तरह से बाहर आकर विजयी मुद्रा में उन्होंने मीडिया से बातचीत की, उससे स्पष्ट हो गया था कि बात उनके पक्ष में गई है।

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