ब्रह्मज्ञान से ही भारत की सुशुप्त अंतर्चेतना होगी पुनः जागृत: साध्वी आस्था भारती

‘भारतीय संस्कृति’ सम्पूर्ण विश्व को संस्कारवान बनाएगी
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से 12 से 18 सितंबर तक डीडीए ग्राउंड, ब्लॉक ए, बंसल भवन के सामने, पेट्रोल पंप के पीछे, सेक्टर 16, रोहिणी, दिल्ली में ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य आयोजन किया जा रहा है। इस महान ज्ञानयज्ञ का शुभारम्भ मंगल कलश यात्रा से किया गया। कथा के प्रथम दिवस भागवताचार्या महामनस्विनी विदुषी आस्था भारती ने कहा कि यह हमारा सौभाग्य है कि हमें भगवान की गाथा करने का सुअवसर मिला है। भारत भूमि महान योगियों-तपस्वियों की साधना स्थली रही है। भारत के तीर्थ-स्थलों में बायो एनर्जी फील्ड व्याप्त रहता है। इसी कारण से यहाँ मरणासन्न व्यक्ति का लिंग शरीर ऊर्ध्व गति को प्राप्त करता है। दिव्य-ऊर्जा लिंग शरीर को एक उछाल प्रदान करती है, जिससे कर्म-संस्कारों के भार से बोझिल सूक्ष्म देह ऊँचाई की ओर गमन करती है। कहा जाता है की हमारे तीर्थ-स्थल कोई ईंट और गारे से निर्मित जगह नहीं है, वह ‘दिव्य-चेतना’ का सघन पुंज है। इसलिए वहाँ के वातावरण में आज भी दिव्यता घुली हुई है। एक स्थावर तीर्थ है, जो भौगोलिक रूप से भारत के मानचित्र पर अंकित है। दूसरे तीर्थ वह है, जो हमारे अंतः करण में स्थित है। उसे आत्मतीर्थ भी कहा जाता है। शास्त्र कहते हैं कि बाहरी तीर्थ एक आंतरिक अवस्था है, जिसमें हमें अपने अंतर्घट में ब्रह्म-तत्त्व के दिव्य प्रकाश का दर्शन होता है। यह दर्शन केवल एक पूर्ण सद्गुरु की कृपा से ही संभव है। गुरु-कृपा से ब्रह्मज्ञान को प्राप्त कर मनुष्य अपनी आंतरिक तीर्थ में स्नान कर पवित्र हो जाता है व मुक्ति का अधिकारी भी बन जाता है।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी कहते हैं- भारत का वैशिष्ट्य मुम्बई की चौपाटी नहीं।  आगरे का ताजमहल अथवा दिल्ली का लालकिला भी नहीं। भारत- ‘भा$रत’ अर्थात जो प्रकाश में लीन है, वही भारत है। भारत का केंद्र हमारा अध्यात्म ज्ञान-विज्ञान- ‘ब्रह्मज्ञान’ रहा है। आज दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान ब्रह्मज्ञान के उसी परमोज्ज्वल पथ को प्रशस्त करने में ही प्रयासरत है। साध्वी जी ने बताया कि ब्रह्मज्ञान से ही भारत की सुशुप्त अंतर्चेतना पुनः अंगड़ाई लेगी। भारत समस्त आरोपित आवरण उतारकर अपनी मौलिक अलौकिकता में स्थित होगा और फिर, सुसंस्कृत संतानों की जननी- ‘भारतीय संस्कृति’ समग्र विश्व को संस्कारवान बनाएगी।

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