देहरादून। इसमे कोई दो राय नही कि देश मे बाघ संरक्षण की दिशा मे चल रहे प्रयासो मे तेजी आई है और बाघो की तादाद भी बढ़ी है। बावजूद इसके तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। शिकारियो की कुदृष्टि बाघो पर है। पिछले 10 सालो के आंकड़े तस्दीक करते है कि देशभर मे हर साल औसतन 31 बाघो का शिकार हो रहा है। यही चिंता का बड़ा कारण भी है। हालांकि, इसे देखते हुए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने उत्तराखंड समेत उन सभी 18 राज्यो को प्रभावी कदम उठाने के निर्देश दिए है, जहां बाघो का संरक्षण हो रहा है।
देशभर मे 2010 मे बाघो की संख्या 1706 थी, जो 2015 मे बढ़कर 2226 हो गई। यह आंकड़ा बाघ संरक्षण के प्रति संजीदगी को दर्शाता है, लेकिन शिकारियो पर नकेल कसने की दिशा मे अभी तक ठोस पहल नही हो पाई है। वह भी तब जबकि कुख्यात शिकारी गिरोहो द्वारा विभिन्न राज्यो मे एक के बाद एक बाघो के शिकार की घटनाएं सुर्खियां बन रही है।
वन्यजीव संरक्षण की दिशा मे कार्य कर रहे संगठन वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन सोसायटी आफ इंडिया (डब्ल्यूपीएसआई) के आंकड़ो पर ही गौर करे तो 2008 से 2017 तक देशभर मे 314 बाघो का शिकार हुआ। इसमे 2016 मे सबसे अधिक 50 बाघ मारे गए, जबकि 2013 मे 43 और 2017 मे 36। उधर, एनटीसीए के उप महानिरीक्षक निशांत वर्मा के मुताबिक शिकारियो पर नकेल कसने के लिए सभी राज्यो के साथ मिलकर ठोस रणनीति तैयार की जा रही है।
देश मे बाघो का शिकार
वर्ष, संख्या
2008, 29
2009, 32
2010, 30
2011, 13
2012, 32
2013, 43
2014, 23
2015, 26
2016, 50
2017, 36
बाघ सुरक्षा को मंथन करेगे 18 राज्य
-अखिल भारतीय बाघ आकलन समेत अन्य मसलो पर भी होगी चर्चा
राज्य ब्यूरो, देहरादून: बाघो पर मंडरा रहे शिकारियो के संकट से निबटने के लिए उत्तराखंड समेत देश के 18 राज्य 23 व 24 जनवरी को कार्बेट नेशनल पार्क मे मंथन को जुटेगे। ये सभी वे राज्य है, जहां बाघ है और इनके संरक्षण की दिशा मे प्रयास चल रहे है। बैठक का आयोजन एनटीसीए की पहल पर किया जा रहा है। इसमे न सिर्फ बाघ सुरक्षा बल्कि फरवरी से होने वाले अखिल भारतीय बाघ आकलन, मानव-वन्यजीव संघर्ष समेत अन्य कई मसलो पर भी विचार-विमर्श कर आगे की रणनीति तय की जाएगी। एनटीसीए के डीआइजी निशांत वर्मा के मुताबिक बैठक मे बाघ संरक्षण के प्रयासो की समीक्षा की जाएगी। उन्होने बताया कि उत्तराखंड , मध्य प्रदेश, कर्नाटक समेत अन्य कई राज्यो मे गुजरे वर्ष हुई बाघो की मौत और शिकार की घटनाओ को देखते हुए इन पर अंकुश लगाने के लिए ठोस एवं प्रभावी रणनीति तैयार की जाएगी। यही नही, मानव और वन्यजीव संघर्ष को थामने के लिए क्या-क्या कदम उठाए जा सकते है, इस पर भी चर्चा होगी। इसके अलावा बाघ आकलन और इसमे अपनाए जाने वाली नवीनतम तकनीकी की समीक्षा होगी। उन्होने बताया कि संरक्षित क्षेत्रो से विस्थापन आदि से जुड़े प्रश्न भी चर्चा का विषय होगे।