नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी (आप) के बीस विधायकों की सदस्यता रद्द होने की हालत में भी दिल्ली सरकार की सेहत पर बेशक सीधा असर नहीं पड़ने जा रहा है, लेकिन इससे पार्टी की बुनियाद कमजोर हो सकती है।
खासतौर से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास के बीच चल रहे मतभेद से विश्वास समर्थक विधायक मुखर हो सकते हैं। वहीं, केजरीवाल की मनमानी का हवाला देते हुए उनके समर्थक कार्यकर्ताओं के भी विश्वास के हक में उठ खड़े होने की आंशका जताई जा रही है।
दरअसल, 2015 के विधान सभा चुनावों में दिल्ली में आप ने क्लीन स्वीप करते हुए 70 में से 67 सीटें जीती थीं। प्रचंड बहुमत से बनी सरकार के अगले पांच साल तक डिगने की उस वक्त कोई आंशका भी नहीं थी।
यही वजह रही कि आप के संस्थापक सदस्यों योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण समेत एक धड़े के आप से बाहर होने के बाद भी सरकार पहले की तरह चलती रही। इससे पार्टी के भीतर तोड़-फोड़ की गुंजाइश नहीं बनी। राज्य सभा चुनाव से पहले कुमार विश्वास का विरोध भी प्रचंड बहुमत के तले दबा रहा।
हालांकि चुनाव के बाद से अब तक पंकज पुष्कर, कपिल मिश्रा समेत पांच विधायक पार्टी से खफा भी हुए। रद्भाजौरी गार्डन से उपचुनाव के चलते यह सीट आप के हाथ से निकल गई यानि आप में 66 विधायक रह गए।