पौड़ी : उत्तराखंड में बढ़ता मानव-जीव संघर्ष वैज्ञानिकों के लिए भी चिंता का सबब बनता जा रहा है। आलम यह है कि वर्ष 2000 से वर्ष 2017 तक चार सौ से ज्यादा लोग वन्य जीवों के हमले में जान गंवा चुके हैं और एक हजार से अधिक घायल हुए हैं। यही वजह है भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के वैज्ञानिक अब वन्य जीवों के व्यवहार में आ रहे बदलाव का अध्ययन करने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए पौड़ी जिले के एकेश्वर क्षेत्र में कैमरे लगाए गए हैं।
दरअसल, बीते चार साल में वन्य जीव हमलों में सबसे ज्यादा मौतें पौड़ी वन प्रभाग में ही हुई हैं। इस दौरान गुलदार के हमले में 24 लोगों की जान जा चुकी है और 134 घायल हुए हैं। डब्ल्यूआइआइ के प्रोजेक्ट एसोसिएट दीपांजन नाहा ने बताया कि पौड़ी जिले का एकेश्वर ऐसा इलाका है, जहां हर वर्ष औसतन गुलदार के हमले में दो से तीन लोग जान गंवाते हैं और 12 से 14 घायल होते हैं।
वह बताते हैं कि अब तक इन हमलों के कारणों का सही पता नहीं चल पाया है। इसके लिए डब्ल्यूआइआइ ने चार माह पूर्व ग्रामीणों के सहयोग से गांवों के पास ही बीस कैमरा ट्रैप लगाए। इन कैमरों को फरवरी अंत में निकाला जाएगा। साहा के मुताबिक इनमें गुलदार, भालू, काकड़ (हिरन की एक प्रजाति) जैसे जीव कैद हुए हैं। अब इन कैमरों की मदद से क्षेत्र में वन्य जीवों की मौजूदगी के विस्तृत आंकड़े उपलब्ध हो जाएंगे।
वीएलआरटी निभा रही अहम भूमिका
मानव-वन्य जीव के बीच संघर्ष को देखते हुए भारतीय वन्य जीव संस्थान ने क्षेत्र के हॉट-स्पॉट बने गांवों में ग्रामीणों की टीम भी गठित की है। इसे वीएलआरटी (विलेज लेवल रिस्पांस टीम) नाम दिया गया है। टीम में गांव के पांच से छह सदस्य शामिल हैं। ये टीम न केवल रात में गश्त करती हैं, बल्कि कहीं जानवरों के हमले की सूचना होने पर रात्रि गश्त करने का जिम्मा ये ग्रामीण संभाले हुए हैं।
गांवों के आसपास लगेगी फॉक्स लाइट
डब्ल्यूआइआइ के प्रोजेक्ट एसोसिएट दीपांजन नाहा के मुताबिक एकेश्वर क्षेत्र में मानव-वन्य जीव संघर्ष पर शोध पूरा होने के बाद यहां के गांवों के समीप फॉक्स लाइट लगाई जाएंगी। इसकी रोशनी दूर-दूर तक पहुंचती है और जंगली जानवर इसके नजदीक नहीं फटकते। बताया कि कैमरे के माध्यम से हो रहे शोध कार्य के पूरा होने के बाद सुरक्षा के लिहाज से अन्य प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।