देहरादून: सरकारी कामकाज का भी ढर्रा अजीब है। अब देखिए, जनपद के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल कोरोनेशन को। इसे जिला अस्पताल बनाने की बात जरूर की जा रही है। लेकिन विभाग इससे मुंह फेरे बैठा है। राजधानी के इस अस्पताल में पिछले दो माह से एनेस्थेटिक नहीं है। जिस कारण ऑपरेशन ठप हैं। यदि कोई ऑपरेशन कराना चाहे तो एनेस्थेटिक का जुगाड़ उसे खुद से करने को कहा जाता है।
कोरोनेशन अस्पताल में हर दिन औसतन पांच ऑपरेशन किए जाते हैं, लेकिन इस सुविधा पर ब्रेक लग गया है। 30 बेड वाले इस अस्पताल में प्रतिदिन करीब 500 मरीजों की ओपीडी रहती है। मरीजों की यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। लेकिन, ताज्जुब देखिए कि स्वास्थ्य महकमा अस्पताल को लेकर लगातार बेरुखी दिखा रहा है। हद ये कि पिछले दो माह में विभाग अस्पताल के लिए एक अदद एनेस्थेटिक तक का बंदोबस्त नहीं कर पाया है। अस्पताल में स्थिति यह है कि यदि कोई मरीज अपने खर्च पर एनेस्थेटिक का जुगाड़ कर पाए तो ऑपरेशन कर दिया जाता है, अन्यथा किसी अन्य अस्पताल जाना पड़ता है।
टिहरी निवासी धन्वंतरी देवी के बेटे का दुर्घटना में पैर टूट गया। डॉक्टरों ने बताया कि उसकी सर्जरी करनी पड़ेगी। उन्हें कहा गया कि वह अपने स्तर पर एनेस्थेटिक का इंतजाम कर लें या बेटे को प्राइवेट अस्पताल ले जाएं। धन्वंतरी का कहना है कि वह इतनी सक्षम होती तो सरकारी अस्पताल में क्यों आतीं।
दरअसल अस्पताल में इससे पूर्व दो एनेस्थेटिक थे, जिनमें एक का स्थानांतरण कर दिया गया। जबकि, एक अन्य बीमारी के कारण छुïट्टी पर चले गए। बाद में उन्होंने खराब स्वास्थ्य के कारण नौकरी छोडऩे की इच्छा जता दी। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एलसी पुनेठा ने एनेस्थेटिक की कमी का मामला स्वास्थ्य महानिदेशक के सामने रखा। बताया गया कि उत्तरकाशी से एक एनेस्थेटिक डॉ. संजीव कटारिया को यहां अटैच भी कर दिया गया था। लेकिन, वहां से उन्हें रिलीव नहीं किया गया।
चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एलसी पुनेठा का कहना है कि इस बारे में लगातार स्वास्थ्य महानिदेशालय से बात की जा रही है। उन्हें कहा गया है कि हर मंगलवार होने वाले वॉक इन इंटरव्यू के माध्यम से यह कमी दूर कर दी जाएगी। उनका कहना है कि मरीज के कहने पर बाहर से एनेस्थेटिक बुलाया जाता है। उन पर किसी तरह का दबाव नहीं बनाया जाता।