देहरादून : जैव विविधता के लिए मशहूर 71 फीसद वन भूभाग वाले उत्तराखंड में अनियंत्रित विदोहन के चलते 16 दुर्लभ वानस्पतिक प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। इन्हें जैव विविधता अधिनियम-2002 की धारा 38 के तहत संकटग्रस्त श्रेणी में अधिसूचित किया गया है। इससे चिंतित सरकार ने अब इनके संरक्षण-संवर्धन को वन प्रभागों की प्रबंध योजनाओं के जैव विविधता संरक्षण कार्यवृत्त में शामिल करने का निश्चय किया है।
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में आवृत्तजीवी (पुष्पीय) वनस्पतियों की 4700 प्रजातियां हैं। इसके अलावा राज्य के वन प्रभागों की वन प्रबंध योजनाओं में 920 प्रजातियां शामिल की गई हैं। इनमें अनेक वनस्पतियां औषधीय महत्व की भी हैं। ऐसे में इनका अनियंत्रित विदोहन भी हो रहा है, जो इनके संकट की वजह बना है। हालांकि, इसके पीछे भी वजह वन समेत अन्य विभागों का ढुलमुल रवैया जिम्मेदार है। परिणामस्वरूप 16 वानस्पतिक प्रजातियां संकट में आ गई हैं। हालांकि, अब इनके संरक्षण-संवद्र्धन के लिए कवायद प्रांरभ कर दी गई है।
ये हैं संकटग्रस्त वानस्पतिक प्रजातियां
मीठा विष, अतीस, दूध अतीस, इरमोसटेचिस (वन मूली), कड़वी, इंडोपैप्टाडीनिया (हाथीपांव), पटवा, जटामासी, पिंगुइक्यूला (बटरवर्ट), थाकल, टर्पेनिया, श्रेबेरा (वन पलास), साइथिया, फैयस, पेक्टीलिस व डिप्लोमेरिस (स्नो आर्किड)।
वन प्रबंध में शामिल प्रजातियां
प्रजातियां, संख्या
झूला, 321
फर्न, 296
मॉस व काई, 226
कुंभीकवक, 49
नग्नबीजी, 28
वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत ने बताया कि प्रदेश में वन प्रभागों की प्रबंध योजनाओं में जैव विविधता संरक्षण कार्यवृत्त में दुर्लभ व संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण-संवर्धन के लिए कार्य तय किए गए हैं। साथ ही वन प्रभागों को निर्देशित किया गया है कि इसके लिए गंभीरता से कदम उठाने के साथ ही इनकी सुरक्षा पर भी खास फोकस किया जाए।