गोपेश्वर: विकास का मतलब यह नहीं कि आंखें बंद कर दौड़ा जाए। मुंह के बल गिरने के सिवा कुछ और हासिल नहीं होगा। विकास के नाम पर प्रकृति से किए जा रहे खिलवाड़ का दुष्परिणाम एक-एक कर सामने आ रहा है। उत्तराखंड में बदरीशपुरी स्थित धार्मिक महत्व की शेषनेत्र झील खात्मे की ओर है। झील लगभग सूख गई है। इसमें नाममात्र को ही पानी बचा है।
झील के चारों ओर भवन निर्माण के चलते उसका अस्तित्व संकट में आ गया है। यह तमाम निर्माण कार्य किसी और ने नहीं बल्कि सरकार ने ही कराए हैं। इसके अलावा झील की सफाई को लेकर भी कोई चिंतित नहीं है, जिससे अब इसमें पानी की जगह मलबा ही शेष है।
कभी लबालब हुआ करती थी झील
बदरीनाथ धाम में स्थित शेषनेत्र झील किसी परिचय की मोहताज नहीं है। लोक निर्माण विभाग निरीक्षण भवन तिराहे के पास 50 मीटर से अधिक क्षेत्र में फैली इस झील की गहराई कभी दस मीटर से अधिक हुआ करती थी। मई-जून के महीने भी इसका पानी सड़क से बहकर नीचे की ओर जाता था।
लेकिन, बीते तीन साल में झील में मलबा भरने और आसपास सरकारी निर्माण होने से इसका दायरा सिमटता चला गया। इस वर्ष तो झील में नाममात्र को ही पानी रह गया है और यही हाल रहा तो इस झील के बस किस्से ही शेष रह जाएंगे।
बदलते मौसम की भी मार…
पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष (बदरीनाथ) बलदेव मेहता बताते हैं कि बारिश और पहाडिय़ों पर हिमखंड पिघलने से शेषनेत्र झील में कभी पानी की कमी नहीं होती थी। लेकिन, बीते कुछ वर्षों में मौसम का मिजाज बदलने से पानी का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। यही नहीं, निर्माण कार्य और झील में गंदगी बढ़ने के कारण इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
पौराणिक मान्यता
झील का धार्मिक महत्व भी है। जानकारों का कहना है कि पुराणों में भी इस प्राचीन झील का उल्लेख है। पौराणिक विवरणों के अनुसार भगवान शेषनाग के अश्रुओं से इस झील का निर्माण हुआ। इसलिए इसे शेषनेत्र झील कहा गया।
बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल कहते हैं, मान्यता के अनुसार भगवान शेषनाग ने यहां पर तपस्या की थी। माना जाता है कि इस स्थान से भगवान शेषनाग दोनों आंखों से भगवान नारायण के दर्शन कर रहे हैं। इसलिए बदरीनाथ धाम आने वाले झील के दर्शनों का भी पुण्य अर्जित करते हैं।
संरक्षण के लिए होंगे प्रयास
श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह के मुताबिक शेषनेत्र झील का विशेष धार्मिक महत्व है, जिसे देखते हुए भी इसका संरक्षण किया जाना आवश्यक है। मंदिर समिति इसके संरक्षण के लिए जिला प्रशासन व नगर पंचायत से कार्ययोजना बनाने का अनुरोध करेगी। झील नगर पंचायत व प्रशासन के अधिकार क्षेत्र में है।
निर्माण को करना होगा सीमित
जोशीमठ निवासी पर्यावरणविद डॉ. एसएस राणा के अनुसार मौसम में बदलाव अपनी जगह है, लेकिन झील को बचाने के लिए इसके पास आवाजाही और निर्माण कार्यों को सीमित करना आवश्यक है। झील की सफाई भी जरूरी है।