दून अस्पताल में असुविधाएँ, इमरजेंसी में आए मरीजों को नहीं मिलते स्ट्रेचर

देहरादून: दून मेडिकल कॉलेज के टीचिंग अस्पताल को अव्यवस्थाओं का मर्ज लग गया है। यही मर्ज मरीज और उनके तीमारदारों को दर्द दे रहा है। हद देखिए कि इमरजेंसी में आए मरीजों को स्ट्रेचर तक नहीं मिल पाते। जो स्ट्रेचर हैं भी वो टूटे-फूटे हैं। लगभग दो माह पूर्व 20 स्ट्रेचर और 20 व्हीलचेयर का प्रस्ताव अस्पताल ने भेजा था, लेकिन यह ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।

दून मेडिकल कॉलेज का टीचिंग अस्पताल सूबे के सबसे बड़े अस्पतालों में शुमार है। यहां न केवल दून, बल्कि पहाड़ के दूरस्थ इलाकों व उप्र-हिमाचल के सीमावर्ती क्षेत्रों से भी मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन, जब से अस्पताल को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किया गया है, व्यवस्थाएं चौपट हैं। इनमें स्टे्रचर व व्हील चेयर की कमी भी शामिल है।
इमरजेंसी में पहुंचने वालों के लिए बाहर ही एक जोन बनाया गया है, जहां स्ट्रेचर व व्हील चेयर रखे गए हैं। ताज्जुब इस बात का है कि बंदोबस्त केवल छह स्ट्रेचर और छह ही व्हील चेयर का किया गया है।

समस्या यहीं खत्म नहीं होती। 20 बेड की इमरजेंसी में मरीजों का अत्यधिक दबाव रहता है। ऐसे में चिकित्सक व स्टाफ स्ट्रेचर पर ही मरीज का उपचार करने लगते हैं। ऐसे में कई बार स्ट्रेचर खाली नहीं होते। कई बार तो मरीज को व्हील चेयर पर बैठा कर ही उपचार किया जाता है।

चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बताया कि करीब 16 स्ट्रेचर टूटे हुए हैं, जिन्हें रिपेयर कराया जा रहा है। 20 नए स्ट्रेचर और व्हील चेयर का प्रस्ताव भेजा गया था, लेकिन अभी तक उस पर कुछ नहीं हुआ।

स्ट्रेचर, व्हीलचेयर के लिए सिक्योरिटी
अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों को स्ट्रेचर व व्हीलचेयर यूं ही नहीं मिलता। इसके लिए उन्हें सिक्योरिटी जमा करनी होती है। स्ट्रेचर के लिए 100, जबकि व्हीलचेयर के लिए 500 रुपये जमा कराने पड़ते हैं। लेकिन, कई असहाय व गरीब लोग इस अवस्था में भी नहीं होते कि यह रकम जमा कर पाएं। अस्पताल में वार्ड ब्वॉय भी पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में तीमारदारों को खुद मरीज को ले जाना पड़ता है।

शव वाहन की डिमांड भी ठंडे बस्ते में: अस्पताल के पास हाल में आठ एंबुलेंस हैं। लेकिन, अधिकारियों का कहना है कि नियमानुसार शव ढोने के लिए एंबुलेंस मुहैया नहीं कराई जा सकती। शव वाहन और एम्बुलेंस दोनों ही अलग होते हैं।

शव वाहन में मरीजों को नहीं ले जाया जा सकता। शव वाहन में बर्न, हादसे, बीमार तमाम तरह के लोगों को ले जाने पर संक्रमण का खतरा होता है। ऐसे में मरीजों को इसमें ले जाने पर गंभीर संक्रमण हो सकता है। अस्पताल के लिए शव वाहन की डिमांड पूर्व में भेजी जा चुकी है, लेकिन इस ओर कार्रवाई नहीं हुई।

आइसीयू मिलता तो बच जाती जान
अस्पताल में पांच बेड का आइसीयू है। इनमें बमुश्किल ही कोई बेड खाली रहता है। ऐसे में मरीज को अन्य अस्पताल रेफर करना पड़ता है। सूत्रों के अनुसार उक्त मामले में मरीज के फेफड़ों में संक्रमण था। उसे आइसीयू मिलता तो जान बच सकती थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।

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