देहरादून: गंगा बेसिन में गोमुख और बदरीनाथ से लेकर हरिद्वार तक के होटल पर्यावरणीय मानकों का मखौल उड़ा रहे हैं। विशेषकर सीवर और गंदे पानी के ट्रीटमेंट के मद्देनजर जल उत्प्रवाह शुद्धिकरण संयंत्र (ईटीपी) लगाने के मामले में। इसी के चलते 479 होटल संचालकों ने अभी तक उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) से होटल संचालन की अनुमति को आवेदन तक नहीं किए हैं। अब इन होटल संचालकों को कारण बताओ नोटिस भेजे जा रहे हैं।
मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पाल के मुताबिक यदि नोटिस के 30 दिन बाद भी यदि रवैया नहीं बदला तो इन होटलों की बंदी की कार्रवाई अमल में लाई जाएगी। गंगा स्वच्छता को लेकर केंद्र सरकार के साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के सख्त रुख को देखते हुए पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) भी हरकत में है। इस कड़ी में होटलों पर शिकंजा कसा जा रहा है, ताकि इनसे निकलने वाली गंदगी गंगा व उसकी सहायक नदियों में न जाए।
इसके लिए पीसीबी ने गंगा के उद्गम गोमुख के अलावा बदरीनाथ से हरिद्वार तक गंगा किनारे के 683 होटल चिह्नित किए। इन सभी को जल एवं वायु अधिनियम के तहत होटल में ईटीपी लगाने और संचालन को अनुमति लेने के निर्देश पीसीबी की ओर से दिए गए।
नियमानुसार होटल में सीवरेज व गंदे पानी के शुद्धिकरण को ईटीपी लगना अनिवार्य है। इसकी व्यवस्था होने पर होटल संचालक को पीसीबी द्वारा संचालन की अनुमति दी जाती है। इस मामले में होटल संचालक कन्नी काट रहे हैं।
पीसीबी के मुख्य पर्यावरण अधिकारी एसएस पाल बताते हैं कि अभी तक चिह्नित 683 होटलों में से 117 को अनुमति दी जा चुकी है, जबकि 87 के मामले में कार्रवाई चल रही है। अलबत्ता, 479 होटलों के संचालकों ने अभी तक आवेदन भी नहीं किए हैं, जबकि इस बारे में कई बार चेताया जा चुका है।
उन्होंने कहा कि अब इन होटलों को नोटिस भेजे जा रहे हैं। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि किसी भी होटल का गंदा पानी गंगा व उसकी सहायक नदियों में न जाने पाए। मंगलवार तक मांगी रिपोर्ट मुख्य पर्यावरण अधिकारी के मुताबिक पीसीबी के रुड़की व देहरादून के क्षेत्रीय अधिकारियों से गंगा बेसिन में स्थित हर छोटे-बड़े होटलों के बारे में विस्तार से जानकारी मांगी गई है। दोनों अधिकारियों को मंगलवार तक हर हाल में रिपोर्ट पीसीबी मुख्यालय भेजने को कहा गया है।