देहरादून: भारत, नेपाल और भूटान के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी के पुख्ता प्रमाण मिलने के बाद अब इनकी सही संख्या सामने आ सकेगी। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन आफ नेचर (आइयूसीएन) के सहयोग से ग्लोबल टाइगर फोरम (जीटीएफ) इसके लिए सर्वे कराने जा रहा है।
इसी कड़ी में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने इस प्रोजेक्ट में शामिल किए गए भारत के चार राज्यों उत्तराखंड, सिक्किम, पश्चिम बंगाल व अरुणाचल प्रदेश को अपने-अपने क्षेत्रों से संबंधित जानकारी जल्द मुहैया कराने को कहा है।
इन राज्यों में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी के पुख्ता प्रमाण मिलते आए हैं। देश में उत्तराखंड समेत अन्य राज्यों में उच्च हिमालयी क्षेत्रों में लगे कैमरा टै्रप में बाघों की तस्वीरें कैद होती आई हैं।
उत्तराखंड की ही बात करें तो यहां भी 12 से 14 हजार फुट की ऊंचाई पर केदारनाथ, मदमहेश्वर, अस्कोट, भिलंगना घाटी समेत अन्य स्थानों पर लगे कैमरा ट्रैप में बाघों की तस्वीरें मिली हैं और यह सिलसिला लगातार चल रहा है।
ऐसी ही स्थिति अन्य राज्यों की भी है। अलबत्ता, वहां इनकी संख्या कितनी है, इसे लेकर रहस्य बना हुआ है। ऐसे में हिमालयी क्षेत्र में बाघों की संख्या का पता लगना अनिवार्य है, ताकि इनके संरक्षण को कदम उठाए जा सकें। इस सबके मद्देनजर ही जीटीएफ अब सर्वे प्रोजेक्ट शुरू करने जा रहा है।
आइयूसीएन के सहयोग से चलने वाले इस प्रोजेक्ट के लिए एनटीसीए ने कवायद प्रारंभ कर दी है। प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी एवं एनटीसीए के डीआइजी निशांत वर्मा के मुताबिक प्रोजेक्ट के तहत चारों राज्यों के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बाघों की मौजूदगी, इनके रूट, वासस्थल, रहने की प्रवृत्ति (स्थायी अथवा सीजनल) समेत अन्य कई बिंदुओं पर डाटा एकत्रित किया जाएगा। फिर इसके आधार पर वहां बाघों के संरक्षण एवं सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाए जाएंगे।
रूट बनाने की होगी कवायद
नोडल अधिकारी वर्मा ने बताया कि आंकड़े मिलने के बाद जीआइएस (ज्योग्राफिकल इन्फार्मेशन सिस्टम) के जरिये बाघों का रूट बनाने की कवायद की जाएगी। इससे पता चल सकेगा कि बाघ कहां-कहां जा रहे हैं। यह भी देखा जाएगा कि हिमालयी क्षेत्र में बाघों के लिए भोजन, वासस्थल की स्थिति क्या है। इस दिशा में भी कदम उठाए जाएंगे।