देहरादून: विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ सत्ता में पहुंची भाजपा को अब इसके साइड इफेक्ट का सामना करना पड़ रहा है। दायित्वों, यानी विभिन्न निगम, बोर्ड, आयोगों में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के मंत्री पद के दर्जे के पदों के तलबगारों की पार्टी में खासी लंबी कतार नजर आ रही है।
सरकार अधिकतम लगभग डेढ़ सौ नेताओं को सत्ता में हिस्सेदारी दे सकती है, लेकिन दावेदारों की संख्या ढाई हजार तक जा पहुंची है। ऐसे में तय है कि निकाय और लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट करने के लिए भारी मशक्कत से गुजरना पड़ेगा।
राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा तीन-चौथाई बहुमत के साथ सत्ता में आई। 70 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के 57 विधायक चुनकर पहुंचे। यह पहला अवसर रहा जब राज्य गठन के बाद कोई पार्टी इस कदर एकतरफा जनादेश हासिल करने में कामयाब रही।
संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक उत्तराखंड में मंत्रिमंडल का आकार अधिकतम 12 सदस्यीय ही हो सकता है, लिहाजा इतनी संख्या में विधायकों को एडजस्ट करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। उस पर मंत्रिमंडल में भी दो स्थान शुरुआत से ही अब तक रिक्त चले आ रहे हैं।
सत्ता में आने पर स्वाभाविक रूप से भाजपा विधायकों और संगठन से जुड़े वरिष्ठ पदाधिकारियों में आकांक्षा जगी कि उन्हें सरकार के मंत्री पद के समकक्ष पदों पर काम करने का मौका मिलेगा। धीरे-धीरे सोलह महीने का वक्त गुजर गया मगर कुछ अपवाद को छोड़कर अभी तक सरकार में इस तरह की नियुक्तियां नहीं की गई।
अलबत्ता, इतना जरूर रहा कि नेताओं और कार्यकर्ताओं के दबाव में दायित्व बटवारे की कवायद पार्टी ने आरंभ कर दी। पहले चरण में लगभग 30 नामों को दायित्वों के लिए चुना गया। पिछले हफ्ते नई दिल्ली में केंद्रीय नेताओं साथ बैठक में इन पर मुहर भी लगा दी गई।
दिलचस्प बात यह कि भाजपा सरकार और संगठन शुरुआत में जरूरी पदों पर ही दायित्व सौंपने की बात कह रहा है लेकिन इसके उलट अब तक लगभग ढाई हजार पार्टी नेता व कार्यकर्ता इन पदों के लिए दावा कर चुके हैं। सरकार के समक्ष दिक्कत यह है कि वह इतनी संख्या में कैसे अपने कार्यकर्ताओं को सरकार में हिस्सेदारी दे।
वैसे भी अब निकाय चुनाव निकट हैं और लोकसभा चुनाव के लिए भी एक साल से कम वक्त बचा है। ऐसी स्थिति में सरकार और पार्टी अपने कार्यकर्ताओं में दायित्व बटवारे को लेकर किसी तरह के रोष पनपने का जोखिम मोल नहीं ले सकती।
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट के मुताबिक निश्चित रूप से कार्यकर्ताओं को दायित्व बांटे जाएंगे। हाल ही में नई दिल्ली में हुई बैठक में इस पर मंथन किया गया। पहले विभिन्न निगम, बोर्ड और आयोगों में जरूरी नियुक्तियां की जाएंगी। इनमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के अलावा सदस्य भी नामित किए जाएंगे। इस तरह के दायित्वों की संख्या 40 से 50 तक हो सकती है।