भोपाल। हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा को हर दम कोसने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता देवदर्शन के लिए मंदिर की दौड़ में भाजपा से पीछे नहीं है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के तमाम अभियान मंदिर में मत्था टेकने के बाद ही शुरू हो रहे हैं। राहुल गांधी से लेकर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बात का बारीकी से ध्यान रख रहे हैं।
गुजरात के विधानसभा चुनाव के समय राहुल प्रचार अभियान के दौरान 20 से ज्यादा मंदिरों में गए थे। उनके अभियान की शुरुआत द्वारका से हुई। बीच में वे सोमनाथ मंदिर भी गए थे। इसका असर वोटरों पर कितना हुआ यह तो नहीं पता, लेकिन भाजपा ने राहुल के मंदिर प्रेम को निशाना बनाकर कांग्रेस पर खूब हमले किए। चार माह बाद होने वाले मप्र विधानसभा के चुनाव के लिए राहुल के प्रचार अभियान का आगाज भी तीर्थस्थल ओंकारेश्वर से होगा। वैसे भी मप्र के राजनीतिज्ञ किसी भी नए काम की शुरुआत उज्जैन के महाकालेश्वर या ओंकारेश्वर मंदिर में दर्शन के बाद ही करते हैं।
कमलनाथ ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पदभार ग्रहण करने के अगले ही दिन उज्जैन जाकर महाकाल का आशीर्वाद लिया था। उज्जैन से वे सीधे दतिया गए थे, जहां उन्होंने पीताम्बरा शक्तिपीठ जाकर आशीर्वाद लिया था। अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ पूरे दो माह संगठन को चुस्त-दुरस्त करने में जुटे रहे। इस दौरान उनकी सक्रियता भोपाल के अलावा दिल्ली और छिंदवाड़ा तक सीमित रही। एक अगस्त से वे मैदान में उतरे हैं। उनका पहला दौरा विंध्य का बना। इसे संयोग कहें या आस्था, कमलनाथ ने मैदानी संघर्ष की शुरुआत भी मैहर स्थित मां शारदा के प्रसिद्ध मंदिर में पूजा-अर्चना के साथ की। मैहर की सभा के बाद जब वे खजुराहो पहुंचे तो जैन मुनि विद्यासागर जी से आशीर्वाद लेने पहुंचे। अध्यक्ष बनने से पहले कमलनाथ ने झोतेश्वर जाकर शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती से भी आशीर्वाद लिया था। कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता सिंधिया भी कम धार्मिक नहीं हैं। उन्होंने भी सरकार के खिलाफ अपनी जनजागरण यात्र की शुरुआत उज्जैन से ही की थी।
सिंधिया आध्यात्मिक संत रावतपुरा सरकार द्वारा मई माह में कराए गए धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए थे। दिग्विजय सिंह भी धार्मिक प्रवत्ति के हैं। उनकी धार्मिकता का इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि वे लगातार छह माह से ज्यादा समय तक नर्मदा नदी की पैदल परिक्रमा करते रहे।