नवरात्र : दस को पूरे दिन होगी कलश स्थापना

मुजफ्फरपुर ।  इस बार चित्रा नक्षत्र व वैधृति योग में 10 अक्टूबर को शारदीय नवरात्र शुरू होगा। पहले दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को सुबह ब्रह्म मुहूर्त से लेकर सूर्यास्त के पूर्व तक कलश स्थापना कर सकते हैं। यह निर्णय गुरुवार को बाबा गरीबनाथ मंदिर में शहर के प्रमुख विद्वान पंडितों की बैठक में लिया गया। इस दौरान नवरात्र पर विस्तार से चर्चा हुई। अध्यक्षता मंदिर प्रशासक पं.विनय पाठक ने की।  बैठक में ज्योतिषाचार्य पंडित कमलापति त्रिपाठी ‘प्रमोद’, ज्योतिष मर्मज्ञ पंडित प्रभात मिश्र, आचार्य धीरज शर्मा, पं.मनोज मिश्रा, आचार्य धर्मेंद्र तिवारी, पं.योगेंद्र शास्त्री, आचार्य सुबोध पांडेय आदि थे। बताया कि कलश में त्रिदेवों का पूजन व सभी तीर्थों का आह्वान भी किया जाता है, जिससे सभी प्रकार के अरिष्टों का नाश होता है। भक्तगण अपने अभीष्ट की सिद्धि के लिए आदिशक्ति मां भगवती के नौ स्वरुपों का पूजन कर उपासना करेंगे। बताते चलें कि इस बार माता का आगमन नौका पर हो रहा है, जो सर्वसिद्धि शुभफल का संकेत है। देवी का गमन हाथी पर हो रहा है, जो शुभ कारक है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने रावण पर विजय पाने के लिए शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक समुद्र किनारे मां भगवती की उपासना की थी। नौ दिनों तक शक्ति पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। कहा जाता है कि दसवें दिन भगवान राम ने रावण का वध किया। नवरात्र के पहले दिन व्रत का संकल्प लेने के बाद मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोते हैं। इसी पर कलश स्थापित किया जाता है। सर्वप्रथम पंचदेवता सहित भगवान गणेश व लक्ष्मी की पूजा की जाती है। नवग्रह, मातृका वेदी, और कलश स्थापना से पहले अच्छे से पूजा व कलश स्थल को गंगाजल से पवित्र कर लें। समस्त देवी-देवताओं का आह्वान करें। कलश में सात तरह की मिट्टी, सुपारी व पैसे रखें। इसके बाद पंच पल्लव डालें, कलश के ऊपर पूर्णपात्र डालें। मिट्टी में जौ को मिलाकर गोलाकार वेदी के ऊपर कलश को स्थापित करें। कलश पर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है। नौ दिन ‘दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। पूजन के समय अखंड ज्योति जलती रहनी चाहिए।

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