प्रभावशाली आरोपितों ने न्यायिक प्रक्रिया में उलझाए रखा रामपुर तिराहा कांड का केस

नैनीताल : रामपुर तिराहा कांड में राज्य आंदोलनकारियों के साथ पुलिस बर्बरता, महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़खानी मामले की जांच को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर हुई थीं। इन याचिकाओं में मसूरी, खटीमा गोलीकांड की भी जांच की मांग की गई थी।कोर्ट ने मामले की सीबीआइ जांच का आदेश दिया था, मगर 24 साल की लंबी न्यायिक लड़ाई के बाद भी अब तक इस कांड के आरोपितों को सजा नहीं हो सकी है। स्वतंत्र भारत में में यह पहला जघन्य कांड था, जिसकी तुलना जलियावाला बाग से की गई थी। यही वजह रही कि नैनीताल हाई कोर्ट की खंडपीठ को सीबीआइ दून द्वारा तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह समेत अन्य के खिलाफ धारा-302 की धारा जोडऩे के सीबीआइ कोर्ट के निरस्त किए गए आदेश को रिकॉल करना पड़ा। मामले के आरोपित प्रभावशाली लोग थे, जिन्होंने न्यायिक प्रक्रिया को उलझा कर रख दिया। इससे दो दशक बीतने के बाद भी नतीजा कुछ नहीं निकल सका। वहीं मामले के गवाह तत्कालीन सीओ जगदीश सिंह के गनर रहे सुभाष गिरी की हत्या कर दी गई थी। वह भी मामले में आरोपित थे और बाद में सरकारी गवाह बन गए थे।

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