गुरुग्राम। गुरुग्राम अतिरिक्त जिला सत्र न्यायाधीश कृष्णकांत के सुरक्षाकर्मी महिपाल की हरकत ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। एक ओर लोग सुरक्षाकर्मियों को ही संदेह की दृष्टि से देख रहे हैं वहीं दूसरी ओर चिंता इस बात की भी है कि आखिर किसके ऊपर भरोसा किया जाए। जिनके पास भी सुरक्षाकर्मी हैं वे दबी जुबान से बोल रहे हैं कि उनके सुरक्षाकर्मी की भी काउंसिलिंग होनी चाहिए। काउंसिलिंग से मानसिक स्थिति का भी पता चल जाएगा। हालांकि, पुलिस आयुक्त केके राव का कहना है कि एक घटना से सभी को संदेह की दृष्टि से देखना उचित नहीं है। न्यायाधीश कृष्णकांत लगभग दो साल से गुरुग्राम में कार्यरत हैं। महिपाल शुरू से ही उनकी सुरक्षा में तैनात था। माना जाता है कि इतने समय में कोई भी कर्मचारी परिवार के सदस्य की तरह हो जाता है। महिपाल भी परिवार के सदस्य के रूप में रह रहा था। लोग इस बात से हैरान हैं कि आखिर ऐसी क्या बात हुई कि उसने न्यायाधीश की पत्नी एवं बेटे को मारने का निर्णय ले लिया। वह परिवार के सदस्यों के साथ साये की तरह चलता था। शनिवार दोपहर भी सेक्टर-49 स्थित आर्केडिया शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में न्यायाधीश की पत्नी एवं बेटे को शॉपिंग कराने के लिए गया था। शॉपिंग करके जैसे ही सभी बाहर निकले, महिपाल ने पहले न्यायाधीश के बेटे ध्रुव को फिर उनकी पत्नी रितु को गोली मार दी। गोली मारने के बाद उसने ध्रुव के चेहरे पर पैर भी मारे। इस तरह की हरकत से सभी हैरान हैं। सेक्टर 31 निवासी सामाजिक कार्यकर्ता जय कुमार एवं हरमेश मल्होत्रा कहते हैं कि न केवल सुरक्षाकर्मी बल्कि समय-समय पर जितने भी निजी स्टाफ हैं चाहे सरकारी विभागों के अधिकारियों के पास कार्यरत हों या फिर निजी संस्थानों में ऊंचे पदों पर कार्यरत, उनकी काउंसिलिंग होनी चाहिए। कई बार निजी स्टाफ किसी कारण से नाराज हो जाता है। ऊंचे पदों पर बैठे कुछ लोग कर्मचारियों की नाराजगी का अहसास कर लेते हैं लेकिन अधिकतर लोग नहीं। इससे नाराजगी अंदर ही अंदर बढ़ती चली जाती है।