नई दिल्ली। हजारों खरीदारों से करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी मामले करने वाले आम्रपाली बिल्डर के मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होगी। बुधवार को इसी मामले में हुई सुनवाई के दौरान फॉरेंसिक ऑडिटर्स ने शुरूआती जांच में बिल्डर द्वारा 100 करोड़ रुपये के फ्रॉड की जानकारी कोर्ट को दी थी।इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज (बृहस्पतिवार को) फॉरेंसिक ऑडिटर्स से बिल्डर की ऑडिट रिपोर्ट सौंपने को कहा था। शुक्रवार को इस ऑडिट रिपोर्ट के तथ्यों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट मामले में आगे की सुनवाई करेगा। बुधवार को ही फॉरेंसिक ऑडिटर्स ने सुप्रीम कोर्ट को बिल्डर प्रोजेक्टों में हुई हेराफेरी की कई चौंकाने वाली जानकारी दी थी। ऐसे में माना जा रहा है कि शुक्रवार को बिल्डर के कई और कारनामों से पर्दा उठ सकता है।फॉरेंसिक ऑडिटरों ने बुधवार को खंडपीठ को बताया था कि आम्रपाली समूह के चीफ फाइनेंशियल ऑफिसर (सीएफओ) चंदर वाधवा जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें याद नहीं कि उन्हें कंपनी का सीएफओ कब बनाया गया। हालांकि उन्हें अपनी शादी की तारीख और अन्य जानकारियां याद हैं। इसके बाद अदालत ने वाधवा को अगली सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर को पेश होने को कहा है। ऑडिटरों ने अदालत को यह भी बताया कि नोएडा, ग्रेटर नोएडा और बिहार के राजगीर की कुल सात संपत्तियों में से छह के दस्तावेज हासिल होने की बात कही गई है। उन्हें अभी तक बिहार के बक्सर की संपत्ति के दस्तावेज हासिल नहीं हो पाए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने हजारों खरीदारों से धोखाधड़ी करने वाले बिल्डर, आम्रपाली समूह की कंपनियों को बुधवार को बड़ा फ्रॉड करने वाली करार दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि बिल्डर ने फ्लैट खरीददारों से ली रकम को दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर कर दिया। अब इस बड़े रैकेट को उजागर करने की जरूरत है। इसमें शामिल लोगों को जरूरत पड़े तो जेल भी भेजा जाएगा।जस्टिस अरुण मिश्रा और यूयू ललित की खंडपीठ को बुधवार को मामले के फॉरेंसिक ऑडिटरों ने कई चौंकाने वाले तथ्य बताए थे। फॉरेंसिक ऑडिटरों ने बताया था कि इन कंपनियों के दस्तावेजों को देखकर पता चलता है कि करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक की रकम आम्रपाली की एक सहायक कंपनी ने गौरीसुता इंफ्रास्ट्रकचर प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी को दे दिया है। फारेंसिक ऑडिटरों ने कहा कि आशीष जैन और विवेक मित्तल, गौरीसुता इंफ्रास्ट्रकचर्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक हैं और वह समूह के वैधानिक ऑडिटरों के रिश्तेदार भी हैं। कंपनी के वैधानिक ऑडिटरों ने भी कई गड़बडि़यां की हैं। वह अपने दायित्वों को निभाने में पूरी तरह से नाकामयाब रहे हैं।