बाढ़ पर घिरी केरल सरकार

नई दिल्ली। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के स्पेशल सेंटर फॉर डिजास्टर रिसर्च (एससीडीआर) ने शुक्रवार को केरल बाढ़ आपदा पर रिपोर्ट जारी की। इसमें बताया गया है कि एससीडीआर ने ढाई साल पहले (वर्ष 2016) में इकोनॉमिकल और पोलिटिकल वीकली में रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें कहा गया था कि कोस्टल रेगुलेशन जोन कानून-2003 के तहत अगर केरल में जल निकायों के पास किसी भी तरह का सामाजिक-आर्थिक विकास किया जाता है तो यह भयावह साबित हो सकता है। इससे जान-माल का काफी नुकसान हो सकता है।एससीडीआर की अध्यक्ष प्रो. अमिता सिंह ने कहा कि केरल बाढ़ की जिम्मेदार केरल राज्य आपदा प्रबंधन अथॉरिटी है। उसने सही इंतजाम नहीं किए। यहां तक कि 100 से ज्यादा पंचायतों और 87 निगमों को पता ही नहीं था कि बांधों के द्वार खोले जा रहे हैं। पानी जब घर तक पहुंचा तो उन्हें पता चला।प्रो. अमिता सिंह ने कहा कि हमारी टीम केरल में वर्ष 2015 से काम कर रही है। जुलाई में टीम की डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर से भी बातचीत हुई। 18 जुलाई और 28 जुलाई को बातचीत में हमने बताया था कि मौसम विभाग की तरफ से यह सूचना दी जा रही है कि राज्य में सामान्य से ज्यादा बारिश होने की आशंका है। इससे पहली काफी ज्यादा बारिश हो चुकी थी, लेकिन इसके बाद भी बांध के द्वार नहीं खोले गए। 28 जुलाई को स्थिति लगातार खराब हो रही थी तो हमारी तरफ से कलेक्टर से कहा गया कि आप बांध क्यो नहीं खोल रहे हैं। इस पर उन्होंने कहा कि उनके पास इस संबंध में कोई निर्देश नहीं हैं उन्होंने बताया कि केरल बाढ़ त्रासदी से राज्य में चार लाख पक्षी मर चुके हैं। चार हजार से ज्यादा बुजुर्गों के घर बर्बाद हो चुके हैं। केरल में कहां पर कितने लोग बसे हुए हैं, इसकी सही से मैपिंग भी नहीं की गई है। वर्ष 2010 में केरल की आपदा प्रबंधन अथॉरिटी ने सर्वे किया था, जिसके आधार पर कई चीजें बताई गई थीं, जिन्हें नियंत्रित करना जरूरी थी। इस रिपोर्ट को केरल के मुख्यमंत्री ने वर्ष 2016 में लागू करने के लिए आदेश दिया, जबकि यह सर्वे वर्ष 2016 एवं 2018 में मान्य नहीं हो सकता है।एससीडीआर की शोधकर्ता गौरिका चुग ने बताया कि केरल बाढ़ त्रासदी में इदुक्की, कुट्टायाम, पथानामिट्टी और अलपुजा जैसे जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैैं। इदुक्की बांध, चेरुथनी और मलाकुजा बांध से जब पानी छोड़ा गया तो इसने वहां की जमीन की मिट्टी को बहुत प्रभावित कर दिया है। जमीन की अंदरूनी मिट्टी जिससे पानी के प्रवाह को संचालित किया जाता है, वह 70 फीसद तक बर्बाद हो चुकी है। बांधों के द्वार जुलाई के पहले हफ्ते में ही खोल देने चाहिए थे, जबकि ये 16 अगस्त को खोले गए। प्रो. अमिता सिंह ने बताया कि केरल में हमारी टीम सितंबर में फिर गई। वहां हमने उन चार जिलों का निरीक्षण किया जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुए थे। हमने ऐसा मंजर देखा जो बेहद भयावह था। लोगों के घरों में उनके पालतू जानवर बंधे हुए मर चुके थे। कई गांवों ऐसे हैं, जहां पानी एवं बिजली के कनेक्शन नहीं हैं।

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