दीपावली पर खतरे में उल्लू की जान

देहरादून: उत्तराखंड में उल्लू समेत दूसरे जंगली जानवरों के शिकार की आशंका ने वन्यजीव महकमे की पेशानी पर बल डाल दिए हैं। असल में संरक्षित श्रेणी में आने वाले उल्लू की जान दीपावली के दौरान सांसत में रहती है। अंधविश्वास के चलते इस दरम्यान उल्लू का शिकार किया जाता है। इस लिहाज से देहरादून, हल्द्वानी, रामनगर, काशीपुर, कोटद्वार, हरिद्वार जैसे क्षेत्र अधिक संवेदनशील हैं। इसके साथ ही शीतकाल में राज्यभर में शिकारियों के सक्रिय होने की आशंका भी रहती है। इस सबके मद्देनजर वन्यजीव महकमे ने सूबे में अलर्ट जारी कर दिया है। खासकर, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश से लगी सीमाओं पर कड़ी निगरानी के निर्देश सभी डीएफओ और पार्क-सेंचुरी प्रशासन को दिए गए हैं। विश्वभर की संस्कृतियों के लोकाचार में उल्लू पक्षी को भले ही अशुभ माना जाता हो, मगर यह संपन्नता प्रतीक भी है। यूनानी मान्यता में इसका संबंध कला और कौशल की देवी एथेना से माना गया है तो जापान में इसे देवताओं के संदेशवाहक के रूप में मान्यता मिली है। भारत में हिंदू मान्यता के अनुसार यह धन की देवी लक्ष्मी का वाहन है। यही मान्यता इसकी दुश्मन बन गई है। दीपावली पर उल्लू की तस्करी बढ़ जाती है। विभिन्न क्षेत्रों में दीपावली की पूर्व संध्या पर उल्लू की बलि देने के मामले सामने आते रहते हैं। उत्तराखंड में भी दीपावली के दौरान उल्लू पकड़ने और इसके शिकार की घटनाएं सामने आती रही हैं। शिकारी और तस्कर कार्बेट, राजाजी रिजर्व समेत अन्य वन प्रभागों के जंगलों में घुसकर अपनी करतूतों को अंजाम देते आए हैं। इस आशंका से राज्य का वन्यजीव महकमा सहमा हुआ है। अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के मद्देनजर होने वाले वन्यजीवों के शिकार को थामने के उद्देश्य से वन्यजीव महकमे की ओर से राज्यभर में अलर्ट जारी कर दिया गया है। इस कड़ी में सभी वन प्रभागों, नेशनल पार्क, सेंचुरी और कंजर्वेशन रिजर्व प्रशासन को गाइडलाइन जारी की गई है। मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक मोनीष मलिक के अनुसार सभी जंगलों के साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में खास निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं। दीपावली पर कहीं भी उल्लू पक्षी का शिकार न होने पाए, इस लिहाज से सुरक्षा चाक चौबंद करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि उन स्थानों पर खास निगाह रखी जाएगी, जहां पक्षियों का व्यापार होता है। दुनियाभर में उल्लू की 216 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से 32 भारत में मिलती हैं। उत्तराखंड की बात करें तो यहां उल्लू की 19 प्रजातियां चिह्नित की गई हैं। 71 फीसद वन भूभाग और छह नेशनल पार्क, सात अभयारण्य व चार कंजर्वेशन रिजर्व वाले उत्तराखंड में हर वर्ष शीतकाल वन्यजीवों पर भारी गुजरता है। असल में शीत ऋतु में अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में हिमपात होने पर जंगली जानवर निचले क्षेत्रों व घाटियों में आ जाते हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों शिकारियों-तस्करों द्वारा शिकार की आशंका अधिक रहती है। इसे देखते हुए वन्यजीव महकमे ने पूरे शीतकाल के लिए भी अलग से अलर्ट जारी किया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *