कूड़े के ढेर में तब्दील हुए राजधानी समेत कई शहर

-ग्रीन दून क्लीन दून का सपना अधूरा
देहरादून। प्रदेश में आगामी 18 नवंबर को प्रदेश के 84 निकायों में चुनाव होने हैं। एक तरह से देखा जाए तो शहर की छोटी सरकार चुनी जानी है। बावजूद इसके यहां एक समस्या ऐसी है जिस पर न तो कभी बड़ी सरकारों की नजर गई और ना ही किसी ने इसके बारे में सोचना मुनासिब समझा। आलम यह है कि देवभूमि कहा जाने वाला शहर कूड़े का ढेर बनता जा रहा है।
राज्य गठन के 18 वर्षों में भी दून क्लीन-दून ग्रीन का सपना अधूरा है। नगर निगम के चुनाव में भी सारा प्रदेश राजनीतिक पार्टियों में बंट जाता है। खूद प्रदेश की राजधानी देहरादून में दून को दून क्लीन-दून ग्रीन के सपने को को साकार करने वाले मेयर की कमी खल रही है। दून मेें यह चुनाव भाजपा कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों में फेर में फंसा नजर आ रहा है। नगर निगम के स्थानीय मुद्दे इस चुनाव से भी गायब होते नजर आ रहे है। सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल का कहना है कि हर शहर का हाल कमोबेश एक जैसा ही है। हल्द्वानी से लेकर हरिद्वार तक और मसूरी से नैनीताल तक हर छोटे-बड़े शहर की आज सबसे बड़ी समस्या कूड़े का उठावन होना है। 18 सालों में कोई भी सरकार इस समस्या का समाधान नहीं खोज पाई है। ऐसे में शहर को कूड़े की समस्या से छुटकारा आखिर कैसे मिलेगा।
राज्य में कूड़े से हालात इतने खराब हैं कि शहरों में साफ-सफाई रखने के लिए एनजीटी और हाईकोर्ट को आदेश देना पड़ता है। बहरहाल, निकाय चुनाव में वोट शहर की वही जनता करेगी, जिसे कभी घर में जमा कूड़े से परेशान होना पड़ता है, तो कभी शहर की सड़कों में फैले कूड़े से। कई बार तो ये गंदगी जानलेवा तक साबित होती है। बावजूद इसके उत्तराखंड के नेताओं को ये मुद्दा शायद कोई मुद्दा नहीं लगता।

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