दुमका। खाना नहीं मिलने से जामा प्रखंड (दुमका, झारखंड) के महुआटांड गांव में 45 साल के कालेश्वर सोरेन की मृत्यु हो गई। तमाम सरकारी योजनाएं उसके लिए बेमानी थीं। उसके चचेरे भाई बुली सोरेन ने कहा कि कालेश्वर अकेले रहता था। घर में खाने को कुछ नहीं था। इधर-उधर से मांग कर भोजन करता था। कभी-कभार किसी रिश्तेदार के घर जाकर खाता था। भूख ने उसे मार डाला।भूख से आदिवासी के मरने की सूचना मिली तो जामा के बीडीओ साधु चरण देवगम और सीओ (अंचलाधिकारी) आलोक वरण केसरी उसके घर पहुंचे। सरकारी अधिकारियों को उसके घर में एक दाना भी अनाज नहीं मिला। अधिकारियों के सामने परिजनों के साथ ग्रामीणों ने बार-बार कहा कि कालेश्वर की मौत खाना नहीं मिलने के कारण हुई है। बीडीओ और सीओ ने पोस्टमार्टम कराने की बात कही तो परिजनों के साथ ग्रामीणों ने मरने के बाद शरीर से चीर-फाड़ नहीं करने की बात कही।पोस्टमार्टम नहीं कराने के बाबत अधिकारियों ने परिजनों और ग्रामीणों से लिखित पत्र लिया। इसके बाद अंतिम संस्कार की अनुमति दी। पोस्टमार्टम नहीं होने के बाद सरकारी अफसर आपस में यह चर्चा करते सुने गए कि राहत मिली। देर शाम ग्रामीणों ने लिख कर दिया कि वह टीबी की बीमारी से पीड़ित था। कालेश्वर के चार लड़के और एक लड़की है। तीन लड़के कमाने के लिए बाहर गए हैं। एक लड़का मंतोष सोरेन मसलिया प्रखंड के जमुनडीह गांव में नाना के घर रह कर मवेशी चराता है। बेटी मनीषा भी नाना के घर गई थी।