दिल की बीमारियों और कैंसर के बाद मौतों का तीसरा सबस मेे बड़ा कारण सीओपीडी

-सीओपीडी भारत में अज्ञात महामारीः डाॅ श्रद्धा सोनी
-मैक्स अस्पताल के पल्मोनोजी विशेषज्ञों ने ‘क्रोनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोगों’ के बारे में बढ़ाई जागरुकता
देहरादून। क्रोनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ (सीओपीडी/फेफड़ों की बीमारी) के बारे में जागरुकता फैलाने के प्रयास में मैक्स हाॅस्पिटल देहरादून के पल्मोनोजिस्ट्स ने यहां सुभाष रोड स्थित एक होटल में एक प्रेस सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें फेफड़ों की बीमारियों के बारे में विभिन्न तथ्यों और मिथकों पर रोशनी डाली गई। सीओपीडी सांस की बीमारी है, यह तब होती है जब सांस के साथ विषैले, घातककण, धुंआ और प्रदूषण के कण हमारे फेफड़ों में चले जाते हैं।
डॉक्टर वैभव चाचरा, कन्सलटेन्ट एवं हैड-पल्मोनोलोजी, मैक्स हाॅस्पिटल, देहरादून ने कहा, ‘‘बहुत सेे लोगों को लगता है कि सांस की बीमारी या खांसी जैसी समस्या का कारण उम्र बढ़ना है।बीमारी की शुरूआती अवस्था में लक्षणों की तरफ़ हमारा ध्यान नहीं जाता।सीओपीडी के लक्षण प्रकट होने में अक्सर सालों लग जाते हैं। व्यक्ति को बीमारी तब महसूस होती है, जब यह एडवान्स्ड अवस्था में पहुंच चुकी होती है। इसके लक्षण हल्के समेे लेकर गंभीर हो सकते हैं, जिसके कारण मरीज़ को सांस लेने में परेशानी होने लगती है।’’ सीओपीडी अक्सर 40 साल सेे अधिक उम्र में होता है, यह बीमारी अक्सर उन लोगों में होती है, जिनमें धूम्रपान का इतिहास हो। उन लोगों में भी सीओपीडी की संभावना अधिक होती है जो लम्बे समय तक रसायनों, धूल, धुंआ या खाना पकाने वाले ईंधन के संपर्क में रहते हैं। भारत में पहाड़ी इलाकों की महिलाएं चारकोल या लकड़ी जलाकर खाना पकाती हैं, ऐसे में वे लम्बे समय तक धुएं के संपर्क में रहती हैं। सीओपीडी के मरीज़ मौसम बदलने पर बीमार पड़ जाते हैं। ठंडे मौसम का इन पर बुरा असर पड़ता है। सांस की बीमारी इन मरीज़ों में सैकण्डरी बैक्टीरियल/ वायरल/ फंगल संक्रमण का कारण बन सकती है।सीओपीडी का कोई इलाज नही ंहै, लेकिन दवाओं के द्वारा इनके फेफड़ा ेंको ज़्यादा नुकसान पहुंचने समेे बचाया जा सकता है और मरीज़ के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाया जा सकता है। दुनियाभर में धूम्रपान 251 मिलियन लोगों अपनी चपेट में जकड़े हुए हैं, इसके कारण हर साल 3.15 मिलियनलोगों की मृत्यु हो जाती है और यह भारत में गैरसंचारी रोगों के कारण होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।रोज़मर्रा की आदतों में छोटे समेे बदलाव लाकर हम अपने आपको बीमारी सेे बचा सकते हैं जैसे धूम्रपान न करें, सेहतमंद आहार लें, सक्रिय रहें, सुरक्षित वातावरण में रहें (वायु प्रदूषण, धुंए, निष्क्रिय धूम्रपान सेे बचें और चूल्हें पर खाना न पकाएं)।’’
डॉक्टर  श्रद्धा सोनी, अटेंडिंग कन्सलटेन्ट, डिपार्टमेन्ट आॅफ पल्मोनोलोजी ने कहा, ‘‘आजकल युवाओं में पाईप, सिगार, हुक्का, पाॅकेटमरिज़ुआना पाईप से धूम्रपान का चलन बढ़ रहा है अगर आपके आसपास कोई धूम्रपान करता है तो आप भी सीओपीडी का शिकार हो सकते हैं।इस बीमारी में फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है, उनका विकास ठीक सेे नहीं हो पाता, फेफड़ों में सूजन आ जाती है।इन सब के चलते फेफड़े अपना काम ठीक समेे नहीं कर पाते, जिससे आॅक्सीजन लेने और कार्बनडाईआॅक्साईड छोड़ने की क्षमता कम हो जाती है।’’  उन्होंने यह भी कहा, ‘‘शहरों में बढ़ता प्रदूषण दिल और फेफड़ों के लिए घातक है।

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