खजाने और बैंकिंग सेक्टर पर महंगा पड़ेगा राहुल का कर्जमाफी का वादा

नई दिल्ली। चुनावी फसल काटने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सभी किसानों के कर्ज माफ करने का सब्जबाग तो दिखा दिया है, लेकिन उनका यह दांव देश के खजाने और बैंकिंग सेक्टर पर बहुत उलटा पड़ सकता है। राहुल के इस वादे को पूरा करने के लिए बैंकों को तकरीबन नौ करोड़ किसानों पर बकाया पांच लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ करना होगा।यह कर्ज देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तकरीबन तीन फीसदी है। जाहिर है कि यह अमल पूरे राजकोषीय गणित को गड़बड़ा सकता है। क्योंकि इसके लिए 2008 में 3.73 करोड़ किसानों के माफ किए गए 52,260 करोड़ रुपए के कर्जे से कई गुना ज्यादा वित्तीय संसाधनों की दरकार होगी।यह कर्ज देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का तकरीबन तीन फीसदी है। जाहिर है कि यह अमल पूरे राजकोषीय गणित को गड़बड़ा सकता है। क्योंकि इसके लिए 2008 में 3.73 करोड़ किसानों के माफ किए गए 52,260 करोड़ रुपए के कर्जे से कई गुना ज्यादा वित्तीय संसाधनों की दरकार होगी।राहुल की इस घोषणा को बेहद संवेदनशील मानते हुए बैंकिंग सेक्टर के लोग अभी चुप हैं, लेकिन उनका मानना है कि पूरे बैंकिंग सेक्टर के लिए यह घातक साबित होगा। विधानसभा चुनावों में कर्ज माफी के वादे की वजह से पहले से ही इन राज्यों में किसानों ने कर्ज लौटाना बंद कर दिया है, अब देश के दूसरे हिस्सों से भी ऐसी खबरें आ सकती हैं।सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने हाल ही में वित्त मंत्रालय के समक्ष यह बात उठाई थी कि छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में किसानों से कर्ज वसूलना मुश्किल हो गया है। दिल्ली मुख्यालय स्थित सरकारी क्षेत्र के एक बैंक के वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक, डर यह है कि कहीं कोई होम लोन और ऑटो लोन माफ करने का वादा न कर दे। 2008 की कृषि कर्ज माफी योजना के बाद दो वर्षों तक किसानों से कर्ज वसूली में दिक्कत आई थी।रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि 2012 में कृषि क्षेत्र में फंसे कर्जों का स्तर 24,800 करोड़ रुपये का था जो 2017 में बढ़कर 60,200 करोड़ रुपए हो गया।

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