देहरादून। न हाड़ कंपा देने वाली सर्द बयार और न हल्की फुहारें। अलबत्ता, गाहे-बगाहे बदरा घिरकर पहाड़ को बर्फ की चादर तो ओढ़ा दे रहे, मगर बारिश के लिहाज से झोली रीती है। देवभूमि में इन दिनों मौसम का यह मिजाज हर किसी को चौंका रहा है। सूरतेहाल, जहन में उठ रहे तमाम सवालों के बीच ये बात भी है कि मौसम का यह रंग किसी बड़े बदलाव का संकेत तो नहीं। हालांकि, मौसम विज्ञानियों के अनुसार इसे लेकर चिंतित होने की जरूरत नहीं। ऐसा पहले भी होता रहा है। इस बार सर्दियों में अब तक पश्चिमी विक्षोभ तो लगातार आ रहे हैं, मगर इनमें इंड्यूस सिस्टम नहीं बन पाए। यही कारण है कि पहाड़ों में बर्फ तो गिर रही, मगर शेष हिस्सों में बारिश नहीं हो रही। यह स्थिति खेती के लिए नुकसानदेह हो सकती है।
उत्तराखंड में नए साल की शुरुआत से ही पहाड़ों में जमकर बर्फबारी हो रही है। अक्सर बदरा उमड़ते हैं और ऊंचाई वाले इलाकों में बर्फ की चादर को और मोटा कर दे रहे हैं। सैलानी भी बर्फ में अठखेलियां करने राज्य में खूब उमड़ रहे हैं, लेकिन बारिश न होने से राज्यवासियों के माथों पर बेचैनी भी ला दी है। मौसम विभाग के आंकड़ों पर ही गौर करें तो एक जनवरी से शुरू हुए विंटर सीजन में अब तक बारिश सामान्य से 73 फीसद कम है।
मौसम के इस मिजाज को लेकर एक नहीं अनेक सवाल लोगों के मन में कौंध रहे हैं। सबके अपने दावे और अपने तर्क हैं। कोई इसे ग्लोबल वार्मिंग के असर से जोड़ रहा तो कोई मौसम में बड़े बदलाव से। हालांकि, मौसम विज्ञानी इससे कतई इत्तेफाक नहीं रखते। वह कहते हैं कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। कई बार ऐसी स्थिति बनी है।
राज्य मौसम केंद्र देहरादून के निदेशक विक्रम सिंह के मुताबिक सर्दियों में बारिश और बर्फबारी पश्चिमी विक्षोभ पर निर्भर करती है। वह बताते हैं कि इस बार पश्चिमी विक्षोभ तो लगातार आ रहे हैं, लेकिन इनमें इंड्यूस सिस्टम नहीं बन पा रहे। ऐसे में पश्चिमी विक्षोभ के कारण ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी तो हो रही, मगर बाकी इलाकों में बारिश नहीं मिल पा रही। पिछले साल भी शुरुआती दौर में ऐसी स्थिति बनी थी।
क्या है इंड्यूस सिस्टम
मौसम विज्ञानी विक्रम सिंह के अनुसार जब पश्चिमी विक्षोभ आते हैं तो उनके कारण राजस्थान, पंजाब, हरियाणा के इर्द-गिर्द इंड्यूस सिस्टम बनता है। यह ऐसा क्षेत्र होता है, जो नीचे तक की हवा को बदल देता है। परिणामस्वरूप सर्दियों में निचले क्षेत्रों में बारिश होती है। इसे ही इंड्यूस सिस्टम कहा जाता है। वह बताते हैं कि इस बार पश्चिमी विक्षोभ अपेक्षाकृत कमजोर रहे हैं, जिससे इंड्यूस सिस्टम नहीं बन पाए। उत्तराखंड में निचले क्षेत्रों में बारिश न होने के पीछे वजह भी यही है।
खेती के लिए बढ़ सकती हैं मुश्किलें
उत्तराखंड में सर्दी की बारिश में भारी कमी खेती के लिए नुकसानदेह हो सकती है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार नवंबर में रबी की फसल की बुआई के वक्त बारिश मिल गई थी। अलबत्ता, दिसंबर से बारिश में भारी गिरावट आई। दिसंबर में बारिश सामान्य से 92 फीसद कम थी और जनवरी में भी अब तक यह 73 फीसद कम है। यदि जल्द बारिश नहीं हुई तो खेती के लिए दुश्वारियां बढऩा तय है।