देहरादून। देवभूमि में अब गजराज की मुश्किलें न सिर्फ कम होंगी, बल्कि उनका मनुष्य से आमना-सामना भी कम होगा और वे वनों में स्वछंद विचरण कर सकेंगे। राज्य में बढ़ते हाथी-मानव संघर्ष को थामने के मद्देनजर सरकार ने हाथी प्रबंधन योजना की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। वन मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने इसके लिए ऐसी कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए हैं, जिससे गजराज भी महफूज रहें और मनुष्य भी। कार्ययोजना का मसौदा बनाने का जिम्मा राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक सनातन को सौंपा गया है। राष्ट्रीय विरासत पशु हाथी का उत्तराखंड में अच्छा खासा कुनबा है और संख्या के लिहाज से वह देश में छठवें स्थान पर है। राजाजी व कार्बेट टाइगर रिजर्व के साथ ही 11 वन प्रभागों में यमुना से लेकर शारदा तक 6643.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में हाथियों का बसेरा है। एक दौर में यहां के हाथी बिहार तक विचरण करते थे। विभाग के अभिलेखों में बाकायदा इसका उल्लेख है, लेकिन अब स्थिति बदली है। हालांकि, प्रोजेक्ट एलीफेंट के बाद यहां हाथियों की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन इनकी आवाजाही के परंपरागत गलियारों (कॉरीडोर) में अतिक्रमण के साथ ही जंगलों से गुजरने वाली सड़क व रेल मार्गों ने खासी मुश्किलें खड़ी की हैं। परिणामस्वरूप जंगल की देहरी पार करते ही हाथियों और मनुष्यों के बीच भिड़ंत हो रही है। इसमें दोनों को ही जान देकर कीमत चुकानी पड़ रही है। अकेले राजाजी टाइगर रिजर्व से गुजर रहे रेलवे ट्रेक पर पिछले 35 वर्षों में रेल से टकराकर 27 से ज्यादा हाथियों की जान जा चुकी है। पिछले वर्ष तो राजाजी से लेकर कार्बेट टाइगर रिजर्व तक के क्षेत्र में हाथियों के हमलों की संख्या अत्यधिक बढ़ी। इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पहली बार यहां तीन हाथियों को मनुष्य के लिए खतरनाक घोषित करना पड़ा। यही नहीं, हाथियों द्वारा मनुष्यों पर हमले के साथ ही फसलों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का क्रम भी बदस्तूर जारी है। नतीजतन, राज्य में बढ़ते हाथी-मानव संघर्ष ने सरकार की पेशानी पर भी बल डाले हैं। वन मंत्री डॉ.हरक सिंह रावत ने माना कि यह संघर्ष बढ़ा है और अब सरकार ने इसे थामने के लिए ठोस एवं प्रभावी कार्ययोजना तैयार कर इसे धरातल पर उतारने की ठानी है। उन्होंने बताया कि हाथी प्रबंधन कार्ययोजना का मसौदा जल्द तैयार करने के लिए राजाजी रिजर्व के निदेशक को निर्देशित किया गया है। इसके बाद मसौदे को कैबिनेट में रखा जाएगा।