देहरादून। गांधी पार्क में अमृत योजना के बजट में लाखों के घोटाले पर नगर निगम प्रशासन ने भले ही पर्दा डाल दिया हो, लेकिन नगर निगम के नए बोर्ड की पहली बोर्ड बैठक में इस मामले पर घमासान तय माना जा रहा। इस मामले में कांग्रेस पार्षद ही नहीं, भाजपाई पार्षद भी दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। स्थिति यह है कि पिछले साल जून में सामने आया यह मामला तत्कालीन नगर आयुक्त ने दबा दिया था।अब नए नगर आयुक्त ने मामले की जांच त्रिस्तरीय कमेटी से कराने की तो बात कही, लेकिन अब तक जांच शुरू ही नहीं हुई। यह पहला मामला नहीं है, जब निगम ने घोटालों की फाइल बिना जांच ही दफन की हो, इससे पहले सोडियम लाइट, टायर खरीद, पोकलैंड मशीन खरीद घोटाले जैसे चर्चित मामले ऐसे ही दबाए गए।सूचना के अधिकार में यह खुलासा हुआ था कि अमृत योजना में बनाए किड्स जोन में लाखों रुपये का घोटाला हुआ है। इसके अलावा पार्क में गुणवत्ता भी ताक पर रखी गई। बाजार में में पांच से छह हजार रूपये में मिल रही एलईडी लाइट 28,600 रुपये की दर पर खरीदी गईं।बैठने वाली बैंच भी 18,000 की दर पर खरीदी गई। सामान्य पोलों की खरीद 55 हजार प्रति पोल की पर की गई। इतना ही नहीं बच्चों की टॉय ट्रेन साढ़े 12 लाख रुपये में खरीदी गई और हैरानी वाली बात ये है कि इसकी टीन शेड पर ही नगर निगम अधिकारियों ने 10 लाख रुपये का खर्च आना दर्शाया।मामला शासन स्तर पर पहुंचा तो 30 जून 2018 को तत्कालीन नगर आयुक्त विजय कुमार जोगदंडे ने मामले में अपर नगर आयुक्त नीरज जोशी को जांच अधिकारी नामित किया। साथ ही ठेकेदार की शेष पचास लाख रुपये की धनराशि का भुगतान भी रोक दिया गया।हैरानी की बात ये है कि नगर आयुक्त और अपर आयुक्त के कमरे अगल-बगल हैं लेकिन जांच आदेश पत्र अपर आयुक्त को मिलने में 28 दिन लग गए थे। पत्र मिलने के एक हफ्ते बाद ही अपर आयुक्त ने मामले से खुद को अलग कर लिया था। तत्कालीन आयुक्त की ओर से दूसरे अधिकारी को जांच सौंपी ही नहीं गई।