हरिद्वार। हरिद्वार संसदीय क्षेत्र में विधानसभा, नगर निकाय, जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और पंचायत स्तर पर सियासी ताकत का आंकलन करें तो भाजपा अन्य के मुकाबले मजबूत दिखाई पड़ रही है। राजनीतिक के इन स्तंभ पुंजों में कांग्रेस भी कहीं-कहीं रोशन है, जबकि बसपा का फैलाव एक सीमित दायरे तक ही है। पिछले एक दशक में राजनीतिक शक्ति संतुलन में खासा बदलाव हुआ है। बसपा की चुनौती लगातार हाशिये पर आई है तो कांग्र्रेस भी आशानुरूप विस्तार नहीं ले पाई। भाजपा ने तमाम विरोधाभासों के बावजूद हर तरह से समीकरण साधते हुए हरिद्वार लोकसभा में ताकतवर सियासी दल की पहचान स्थापित की है।राज्य गठन के बाद 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल कर ताकत का लोहा मनवाया, लेकिन उसके बाद सपा यहां से हाशिये पर चली गई। बसपा ने शुरुआती विधानसभा चुनावों में मजबूत प्रदर्शन किया। इसके बाद आपसी कलह व मनमाने फैसलों ने बसपा की दावेदारी को पीछे धकेल दिया। कांग्रेस ने 2009 में इस सीट पर चुनाव जीतकर मजबूती का संदेश दिया, लेकिन पार्टी की फूट व टूट में उलझकर कांग्रेस संघर्ष करने की स्थिति में पहुंच गई। कुल 18 लाख तीन हजार मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में भाजपा को टक्कर देना विपक्षी दलों के लिए बड़ी चुनौती होगा।