देहरादून। करीब 6 साल की कानूनी लड़ाई और पुत्र के रूप में हक मिलने के बाद चार साल लगातार बीमार पिता की 24 घंटे सेवा, और पिता के जाने के बाद छह माह के भीतर ही निधन। यह कहानी है उस रोहित शेखर तिवारी की जिसने बचपन के साथ-साथ अपनी पूरी जवानी भी पिता का साया पाने के इंतजार में पल-पल कर काट दी। जब जीवन के 34 बसंत देखने के बाद पिता ने अपना लिया तो वो उन्हें खुले दिल से माफ कर अपना दर्द भूल गया। बचपन से लेकर जवानी तक की तमाम गुजारिश, निवेदन और प्रार्थना बेअसर रही तो 2008 में करीब 28 साल की उम्र में पिता एनडी तिवारी से अपना हक पाने के लिए रोहित शेखर तिवारी ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन जैसा कि इल्म था एनडी ने उन्हें इस पर भी बेटा मानने से इनकार कर दिया और फिर यहां से शुरू हुई लंबी कानूनी लड़ाई मार्च 2014 तक चली। 34 साल की उम्र में कोर्ट के आदेश के बाद एनडी ने रोहित को अपना बेटा मानकर जब उनका माथा चूमा तो वो बचपन से लेकर जवानी तक अपने पिता की छाया पाने के लिए किए अपने संघर्ष को भूल गए और पिता को पलभर में माफ कर दिया।
रोहित शेखर तिवारी को पिता एनडी तिवारी प्यार से गुंजनू बुलाते थे। वो कहते थे कि ‘मेरे पिता से जुड़ीं कंट्रोवर्सी नहीं, उनके द्वारा किए विकास कार्यों को देखें। मेरे पिता ने 65 साल तक देश की सेवा की है, मुझे कहने में कोई हिचक नहीं कि इस मामले में वे अटल बिहारी वाजपेयी और प्रणव मुखर्जी से भी कहीं आगे हैं।’