सांस और फेफड़ों की बीमारी आमतौर पर 40 साल की उम्र के बाद होती रही है। वर्तमान में खानपान की गड़बड़ी, नशे और हवा में अत्यधिक प्रदूषण के कारण यह बीमारी कम उम्र में भी होने लगी है। श्री महंत इंदिरेश अस्पताल में पल्मोनरी विभाग के विभागाध्यक्ष वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. जगदीश रावत ने बताया कि लंबे समय तक धूम्रपान करने या धुएं वाले वातावरण में रहने वाले इंसान इस बीमारी की संभावना अधिक रहती है। इस बीमारी के कारण सांस की नली में सूजन आ जाती है। इससे सांस की नली संकरी हो जाती है।इससे फेफड़ों पर अत्यधिक दबाव के कारण दम फूलने, खांसी और सीने में जकड़न की समस्या होने लगती है। इस स्थिति को सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज) कहा जाता है। डॉ. जगदीश रावत के मुताबिक शोध से पता चला है कि उत्तराखंड जैसी पहाड़ी राज्यों में इस बीमारी का असर सामान्य से चार गुना अधिक है। सांस की बीमारी के कारण, लक्षण, बचाव और उपचार को लेकर अमर उजाला संवाददाता ने डॉ. जगदीश रावत से बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं।