कुमाऊं के प्रवेश द्वार में लोग 18 साल बाद फिर कर्फ्यू के गवाह बन रहे हैं। हालांकि कर्फ्यू वनभूलपुरा क्षेत्र में लगाया गया है, लेकिन राज्य स्थापना के बाद शहर में ऐसी स्थिति बनने का यह दूसरा मौका है। विभाजन से पहले और बाद की बात करें तो ऐसा सिर्फ आंदोलन और बेकाबू स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए होता था। मगर, ये पहला अवसर है जब कोरोना महामारी से जनता को बचाने के लिए सत्ता ने कठोर निर्णय लिया है। इतिहासकार और आंदोलनों में सक्रिय रहे लोग बताते हैं कि पहाड़ हमेशा से ही शांत रहा। उत्तर प्रदेश से विभाजन के बाद 2003 में एक छात्र आंदोलन के दौरान हल्द्वानी में कर्फ्यू की स्थिति बनी थी। इस समय छात्र नेता भुवनेश बिष्ट ने आत्मदाह कर लिया था और करीब 6 दिन तक बंद हो गया था। इसके बाद कभी ऐसी स्थिति नहीं बनीं। बताते हैं कि इससे पहले 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश में उपजे हालातों के दौरान हल्द्वानी में कर्फ्यू की स्थिति बनी थीं।