नेशनल डेस्कः देश में कोरोना वायरस के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और आए दिन इसके नए-नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। देश में कोरोना मरीजों की संख्या 28.36 लाख से अधिक हो गई। कोरोना के लक्षण साधारण वायरस जैसे ही हैं। संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से यह वायरस नाक और मुंह के जरिए किसी को भी बीमार कर सकता है। वहीं इस वायरस को लेकर अब चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। बताया जा रहा है कि मल से भी लोगों को कोरोना वायरस हो रहा है और इसी के चलते अब हैदराबाद में सीवेज की जांच की गई। इससे यह पता चला कि हैदराबाद के किस इलाके में कोरोना का खतरा कितना है।
दरअसल देश की प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्थाओं CSIR-CCNB और CSIR-IICT ने एकसाथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर काम किया है। इन दोनों संस्थानों के वैज्ञानिकों का कहना है कि किस इलाके में कोरोना का संक्रमण कितना फैला है और यह कितना प्रभावी यह जानने के लिए सीवेज की जांच सही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक सीवेज से कोरोना का सैंपल लेना खतरनाक भी नहीं होता क्योंकि यहां मौजूद कोरोना वापस संक्रमण फैलाने में कमजोर होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक कोरोना संक्रमित इंसान कम से कम 35 दिनों तक अपने मल के जरिए वायरस के जैविक हिस्से निकालता रहता है, ऐसे में उस इलाके की एक महीने की स्थिति जानने के लिए सीवेज से सैंपल लेना बेहतर तरीका है।
हर दिन 180 करोड़ लीटर पानी का उपयोग
रिपोर्ट के मुताबिक हैदराबाद में हर दिन 180 करोड़ लीटर पानी का उपयोग होता है और इसमें से 40 फीसदी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STP) में जाता है। STP से सीवेज सैंपल लेने से पता चला कि शहर के किस इलाके में कोरोना के RNA की क्या स्थिति है। वैज्ञानिकों के मुताबिक
कोरोना के RNA का सैंपल STP में उस जगह से लिया गया जहां से शहर की गंदगी आती है क्योंकि एक बार सीवेज का ट्रीटमेंट हो गया तो उसमें वायरल RNA नहीं मिलेगा।
करीब 2 लाख लोगों ने मल से फैलाया कोरोना
CSIR-CCNB और CSIR-IICT के वैज्ञानिकों ने मिलकर हैदराबाद के 80 फीसदी STP की जांच की तो पता चला कि करीब 2 लाख लोग लगातार अपने मल से कोरोना वायरस के जैविक हिस्सों को रोज निकाल रहे हैं, जब इस आंकड़ों की जांच की गई तो पता चला कि हैदराबाद में करीब 6.6 लाख लोग कोरोना से बीमार हैं।
दोनों स्टडी को प्रीप्रिंटर सर्वर MedRxiv पर प्रकाशित की गई है। इसका पीयर रिव्यू होना बाकी है। CCMB के निदेशक डॉ. राकेश मिश्रा ने बताया कि हमारी जांच में यह पता चला कि ज्यादातर लोग एसिम्प्टोमैटिक हैं, इन्हें अस्पताल में भर्ती करने की जरूरत नहीं है। अस्पतालों में गंभीर मरीज पहुंचे और सिर्फ उनका इलाज हुआ, इससे कोरोना की वजह से मृत्यु दर भी कम हुई।