कोराना संकट काल ने जीवित लोगों के जीवन पर ही नहीं पितरों के लिए किए जाने वाले पिंडदान पर भी असर डाला है। बदरीनाथ ब्रह्मकपाल पर पितरों के मोक्ष के लिए पिंड दान तर्पण किया जाता है। मगर इस बार यहां श्राद्ध पक्ष में गिनती के लोग ही अपने पितरों का पिंडदान करने आये।
उनमें भी अधिकांश स्थानीय लोग ही हैं। ब्रह्मकपाल के बारे में कहा जाता है की जो व्यक्ति ब्रह्मकपाल पर एक बार पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान तर्पण करवाते हैं उन्हें फिर कभी दोबारा कहीं भी पिंडदान तर्पण कराने की आवयकता नहीं होती है। लेकिन इस वर्ष कोरोना संक्रमण के चलते ब्रह्मकपाल में सन्नाटा पसरा रहा।
2013 में चार हजार से अधिक लोगों ने किए थे पिंडदान:वर्ष 2013 आपदा काल में भी ब्रह्मकपाल पर श्राद्ध पक्ष में 4 हज़ार से अधिक लोगों यहां पहुंच कर पिंडदान किया था। जबकि वर्ष 2018 और 2019 में तो 25 हज़ार से अधिक श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर पिंडदान तर्पण करवाया था।
जबकि इस वर्ष केवल श्राद्ध पक्ष में 80 लोगों ने ही पिंड दान तर्पण करवाया है। ब्रह्मकपाल के चारों थोकों के अध्यक्ष उमेश सती ने बताया कि पीछले वर्षों के मुकाबले इस वर्ष बदरीनाथ धाम व ब्रह्मकपाल पर बहुत कम मात्रा में श्रद्धालु आ रहे हैं।
उनका कहना है कि अगर पिछले वर्षों की बात करें तो काफी मात्रा में श्रद्धालु ब्रह्मकपाल पहुंच कर अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंड दान करवाते थे, लेकिन इस वर्ष केवल प्रदेश एवं दिल्ली, कलकत्ता के लोग ही आकर पिंड दान करवा रहे हैं।
दक्षिण भारत, और हिमाचल से ज्यादा आते हैं लोग
मुख्य रूप से ब्रह्मकपाल पर दक्षिण भारत , नेपाल व हिमांचल से लोग यहां पहुंच कर पिंड दान तर्पण करवाते हैं लेकिन इस वर्ष इन स्थानों से कोई भी नहीं पहुंच पाया है।