पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे क्या राष्ट्रीय राजनीति को भी किसी रूप में प्रभावित करेंगे? राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा स्पष्ट रूप से और तत्काल तो नजर नहीं आता है लेकिन फिर भी इन चुनाव नतीजों के कुछ संदेश राष्ट्रीय राजनीति के लिए हैं।
जानकारों की मानें तो इन चुनावों में ममता बनर्जी ने शानदार जीत हासिल कर विपक्ष की एक मजबूत नेता के रूप में अपने को पेश किया है। जिस प्रकार समूची भाजपा, कई राज्यों के मुख्यमंत्री, सारा तंत्र जुटकर पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने में लगा हुआ था और उसके ऊपर दस साल के शासन की स्वभाविक सत्ता विरोधी लहर। लेकिन इसके बावजूद ममता बनर्जी का इन चुनाव में शानदार जीत हासिल करने से यह संदेश गया है कि वह भाजपा से जमकर लड़ी और सफल रही।
देखा जाए तो संसद में भी तृणमूल कांग्रेस ही सरकार की नीतियों के खिलाफ सर्वाधिक मुखर रहती है। प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस से भी ज्यादा। इसलिए भविष्य में केंद्रीय स्तर पर भी विपक्षी राजनीनिक का केंद्र बिन्दु ममता बनर्जी बन सकती हैं।
दरअसल, जब भी केंद्रीय राजनीति में एक मजबूत विपक्षी चेहरे के तौर पर जब भी कोई गैर कांग्रेसी चेहरे के विकल्प पर चर्चा होती है तो उसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार का नाम आता है। लेकिन यह जीत ममता को बढ़त प्रदान करेगी। दूसरे यह चुनाव सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के लिए भी संकेत हैं। उसे इस बात को ध्यान में रखना होगा कि हिन्दुत्व का फार्मूला हर बार या हर राज्य में सफल नहीं हो सकता है। विकास के मुद्दों को लेकर भी जनता के बीच में जाना होगा। जमीनी स्तर पर कार्य भी करना होगा और अपने संगठन को मजबूत करना होगा। सिर्फ तोड़फोड़ करके लाए गए नेताओं से चुनाव जीतने और सरकार बना लेने का फार्मूला हर बार नहीं चल सकता है।