देहरादून: छह साल से एकांकी जीवन बिता रही ‘जंगल की रानी’ के लिए ‘राजा’ की तलाश चल रही है। पांच ‘युवराज’ दौड़ में हैं। अब देखने वाली बात होगी कि रानी का वरण कौन करता है।
बात हो रही है राजाजी टाइगर रिजर्व के पूर्वी क्षेत्र मोतीचूर-कांसरो की। जहां होश संभालने के बाद से एक बाघिन अकेली है। परिस्थितियां ऐसी हैं कि वह दूसरे इलाके में भी नहीं जा सकती। अब इसके साथी के लिए कार्बेट टाइगर रिजर्व के बफर और तराई पूर्वी वन प्रभाग में पांच जवान बाघ चिहिृनत किए गए हैं।
इनमें से एक को यहां शिफ्ट किया जाना है, ऐसा करने से पहले उनका बाकायदा परीक्षण होगा। इसमें देखा जाएगा कि आनुवांशिक रूप से बाघिन से एकदम अलग है अथवा नहीं।
राजाजी टाइगर रिजर्व भले ही हाथियों के लिए मशहूर हो, मगर इसकी चीला और गौहरी रेंजों में दो दर्जन से ज्यादा बाघों का बसेरा भी है। अलबत्ता, पूर्वी हिस्से कांसरो-मोतीचूर व धौलखंड क्षेत्र में एक-एक बाघिन की मौजूदगी है। ये दोनों ही छह साल से एकाकी जीवन जी रही हैं।
माना जाता है कि ढाई-तीन साल की उम्र में ये चीला क्षेत्र से यहां आ तो गई, लेकिन वापस नहीं जा पाईं। असल में इस क्षेत्र में हरिद्वार-देहरादून हाइवे पर 24 घंटे वाहनों की आवाजाही के साथ ही रिजर्व से गुजर रही रेल लाइन के बाधा बनने से दोनों बाघिनें अपने-अपने दड़बों तक ही सिमटी हुई हैं।
बेहतर वासस्थल के मद्देनजर इन क्षेत्रों में भी बाघों का कुनबा बढ़ाने की तैयारी है। इसके तहत प्रथम चरण में मोतीचूर-कांसरो में जवान नर बाघ को शिफ्ट करने की कसरत जोर-शोर से चल रही है। प्रमुख वन संरक्षक एवं मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डीवीएस खाती के मुताबिक मोतीचूर-कांसरो में रह रही बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर उसे रेडियो कॉलर पहनाने की अनुमति मिल गई है।
आनुवांशिकी के मद्देनजर उसका डीएनए परीक्षण भी किया जाएगा। उसके साथी के लिए चिह्नित किए गए बाघों में जिसे यहां शिफ्ट किया जाएगा उसका भी डीएनए परीक्षण होगा।
12 जून को हरी झंडी की उम्मीद
राजाजी टाइगर रिजर्व के निदेशक सनातन सोनकर बताते हैं कि पूरी योजना का खाका तैयार है, जिसे 12 जून को दिल्ली में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के समक्ष रखा जाएगा। उम्मीद है कि इसी दिन बाघ को शिफ्ट करने की अनुमति मिल जाएगी।
उन्होंने बताया कि इसके बाद बाघिन को साथी मिल जाएगा। शिफ्टिंग की कार्रवाई होने के बाद दोनों पर रेडियो कॉलर की मदद से नजर रखी जाएगा।